कांग्रेस-युक्त डूसू ने बढ़ाई भाजपा की चिंता

लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) से अच्छी खबर आई। 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करके कांग्रेस को हाशिए पर पहुंचाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) को पहला झटका उस साल के डूसू चुनाव में लगा था जब उसके उम्मीदवार तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे। उसके बाद आप ने डूसू चुनाव अब तक लड़ने का फैसला नहीं किया। इस चुनाव से पहले बवाना विधानसभा उपचुनाव में उसे जीत मिली जिससे आप को संजीवनी देने का काम किया है। इस चुनाव से भाजपा को भारी झटका लगा है। डूसू चुनाव से ठीक पहले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने दिल्ली में स्वामी विवेकानंद पर कार्यक्रम के बहाने छात्र और युवाओं से समर्थन की अपील कर दी।

वैसे भी जब पूरे देश में प्रधानमंत्री के पक्ष में वातावरण होने का दावा किया जा रहा हो तब डीयू की हार मायने रखती है। लगातार तीसरी बार नगर निगमों में भाजपा की जीत के बाद मान ही लिया गया था कि दिल्ली में भी नरेंद्र मोदी का जादू चल रहा है। इसी 13 अप्रैल को हुए राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में भाजपा जीती और आप उम्मीदवार की जमानत जब्त हुई। दिल्ली में सरकार बनने के बाद अगर पंजाब भी आप जीत जाती तो वास्तव में यह पार्टी राष्ट्रीय बन जाती लेकिन सरकार बनने के साथ ही उसे झटका लगने लगा। इस साल 13 अप्रैल को राजौरी गार्डन सीट के उपचुनाव में न केवल आप पराजित हुई बल्कि उसके उम्मीदवार को दस हजार वोट मिले। कांग्रेस के मत के औसत में 21 फीसद उछाल के साथ यह 33 फीसद पर पहुंच गया। इससे कांग्रेस को निगम चुनाव में बड़ा सहारा मिला। अगर निगम चुनाव में कांग्रेस में बगावत नहीं होती तो कांग्रेस इससे बेहतर नतीजे लाती। वोट का औसत बढ़े बिना भाजपा तीसरी बार निगम चुना जीती।

भाजपा का संकट इसलिए भी बड़ा है कि उसके नेता का सबसे बड़ा समर्थक वर्ग छात्र और युवा बताया जा रहा था। देश के कई विश्वविद्यालयों में एबीवीपी की हार के बाद अब देश की राजधानी में हुई हार से उसे बड़ा झटका लगा है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं पर इस हार का असर होने वाला है।

 

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