कान फिल्म समारोहः गोदार की ‘इमेज बुक’ – कला और सिनेमा की बेमिसाल जुगलबंदी
ज्यां लुक गोदार की नई फिल्म ‘इमेज बुक ’का 71 वें कान फिल्म समारोह के प्रतियोगिता खंड में दिखाया जाना एक महत्त्वपूर्ण घटना है। यह फिल्म कला और सिनेमा की बेमिसाल जुगलबंदी है जिसका दूसरा उदाहरण विश्व सिनेमा के इतिहास में नहीं मिलता। इसमें न कोई कहानी है न संवाद, न कोई अभिनेता।
यह एक विलक्षण वीडियो आलेख है। यहां ग्रैंड थियेटर लूमिएर में शुक्रवार को फिल्म के वर्ल्ड प्रीमियर के समय समारोह के निर्देशक थेरी फ्रेमो और अध्यक्ष पियरे लेसक्योर के साथ दर्शकों ने खड़े होकर फिल्म की टीम का स्वागत किया।
अभी पिछले ही साल गोदार के युवा दिनों पर बनी माइकेल हाजाविसियस की फिल्म द रिडाउटेबल को कान फिल्म समारोह के प्रतियोगिता खंड में दिखाया गया था।
गोदार के सम्मान में उनकी फिल्म पियरो द मैड मैन के चुंबन दृश्य को इसबार समारोह का मुख्य पोस्टर बनाया गया है। दो साल पहले भी कान फिल्म समारोह (2016) का पोस्टर उनकी फिल्म कंटेंप्ट से डिजाइन किया गया था। फिल्म के प्रदर्शन के दूसरे दिन शनिवार को उन्होंने अपने सिनेमैटोग्राफर फाबरिक अरानो के आईफोन पर प्रेस कांफ्रेंस में सवालों के जवाब दिए। कान के इतिहास में पहली बार ऐसी प्रेस कांफ्रेंस हुई जिसमें आईफोन पर सवाल जवाब हुए। गोदार 13 साल बाद प्रेस से मुखातिब हुए थे। इस 87 वर्र्षीय दिग्गज फिल्मकार ने घोषणा की कि जबतक उनके हाथ-पांव और आंखें सही सलामत हैं वे फिल्में बनाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि यूरोप को रूस के बारे में नरमी बरतनी चाहिए और अरब देशों के प्रति उदार नजरिया रखना चाहिए। उन्होंने सिनेमा के भविष्य के बारे में कहा कि दस साल बाद सारे थियेटर मेरी फिल्में दिखाएंगे और गंभीर सिनेमा का लोकप्रिय दौर लौटेगा। उन्होंने कहा कि सिनेमा की अपनी भाषा होती है। उसे किसी दूसरे के शब्दों की जरूरत नहीं।
दुनिया के तीसरे सबसे बड़े सदाबहार फिल्मकार ज्यां लुक गोदार हमेशा से हॉलीवुड और मुख्यधारा-सिनेमा के खिलाफ रहे है। वे दुनिया के अकेले ऐसे फिल्मकार हैं जिनपर सबसे ज्यादा लिखा गया है। उन्हें जब 2010 में लाइफटाइम अचीवमेंट का ऑनरेरी ऑस्कर सम्मान घोषित हुआ तो वे सम्मान लेने नहीं गए। उन्होंने 1968 में छात्र आंदोलन के पक्ष में कान फिल्म समारोह को बंद करा दिया था। उनकी नई फिल्म इमेज बुक एक तरह से सिनेमा में उनकी इसी प्रतिरोधी चेतना की ही अभिव्यक्ति है और उनकी पिछली फिल्मों – फिल्म सोशलिज्म (2010) और गुडबाय टू लैंग्वेज (2014 )- का विस्तार है जिनमें केवल दृश्यों के कोलाज हैं। इमेज बुक में एक तरह से उन्होंने आज की दुनिया का दिल दहलाने वाला आईना दिखाया है। पचास और साठ के दशक की फिल्मों से लेकर न्यूजरील वीडियो तक, दुनिया भर में छपी खबरों के कोलाज और मानव सभ्यता पर मंडराते खतरों से जुड़े चित्र – सबकुछ हजारों कहानियां बयान कर रहे हैं। एक पूरा खंड उनके वीडियो महाकाव्य सिनेमा का इतिहास से लिया गया है जिसे बनाने में उन्होंने दस साल लगाए थे (1988-1998)।
यह आज के संसार की क्लाईडोस्कोपिक यात्रा है जो कई खंडों में चलती है मसलन वन रीमेक, सेंट पीट्सबर्ग, अरब, युद्ध, औरतें, शब्द आदि। इस्लामिक स्टेट (आइएस) के वीडियो हैं तो सामूहिक नरसंहार की क्लिपिंग। एक दृश्य में कुत्तों की तरह रेंगते नंगे स्त्री पुरुष हैं (उत्तर कोरिया), तो औरतों की योनि में गोली मारते सैनिक हैं। एक जगह वे बताते हैं कि प्रेम के इजहार में सदियों से मर्द झूठ बोलते आ रहे हैं और यह कि हमारी सभ्यता साझा हत्याओं पर आधारित है। कहानी के नाम पर वे एक कविता कहते हैं -क्या आपको अभी तक याद है कि आपने अपने विचारों की ट्रेनिंग में कितनी उम्र लगा दी। अक्सर इसकी शुरुआत एक सपने से होती है। हमें आश्चर्य होता है कि कैसे हमारे भीतर नीम अंधेरे में सघन रंग फूटते हैं।
ये रंग धीमी नरम आवाज में बड़ी बातें कह जाते हैं। इमेज और शब्द जैसे तूफानी रात में लिखे बुरे सपने, पश्चिम की नजर के नीचे एक खोया हुआ स्वर्ग। युद्ध यहां है। वे कहते हैं शब्द कभी भाषा नहीं हो सकते। जब भी हम खुद से बात करते हैं तो किसी दूसरे के शब्द क्यों बोलने लगते हैं। इमेज बुक आज की दुनिया पर गोदार की एक बड़ी सिनेमाई टिप्पणी है।