किताबों के मेले में गूंजी कॉपीराइट की वाणी
वाणी प्रकाशन समूह ने एनी बुक्स प्रकाशन को जॉन एलिया की शायरी की किताबें छापने के लिए कानूनी नोटिस भेजा है। किताबों से हिजाब हटाने, लोकार्पण, तालियों, लोगों के मिलने-मिलाने के साथ ही दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में कॉपीराइट का धड़का भी लग गया है। लेखक और पाठक के बीच बहस में प्रकाशक के हक और प्रकाशन जगत की हकीकत पर भी बात उठ गई है। मेले में किताब बेचते प्रकाशक को पता चलता है कि वह जिस कलमकार के साहित्य का संरक्षण हासिल कर बैठा है उसके शब्द किसी और छापेखाने से भी छप रहे हैं। किताबों की दुनिया में कॉपीराइट को लेकर बेतकल्लुफी का माहौल भी पता चलता है। वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल ने शनिवार को बताया कि जॉन एलिया की शायरी के सारे कॉपीराइट उनके परिवार के पास हैं। उनके परिवार से इजाजत लिए बगैर कुछ लोग जॉन एलिया की शायरी छाप रहे हैं। वाणी प्रकाशन ने जॉन एलिया को जब प्रकाशित करने की योजना बनाई थी, तो इसके कॉपीराइट की पूरी तफ्तीश की और इस दौरान पाकिस्तान से लेकर हिंदुस्तान में उनके परिवारवालों से संपर्क किया। अदिति ने बताया, हमने जॉन एलिया की पत्नी जाहिदा हिना से बात की। जाहिदा हिना एक मकबूल लेखिका और स्तंभकार हैं। इसके बाद जॉन एलिया के सारे साहित्य का संरक्षण वाणी प्रकाशन को मिला।
अदिति माहेश्वरी के मुताबिक, वाणी प्रकाशन ने सआदत हसन मंटो के साहित्य का भी संरक्षण हासिल किया था। पूरे भारत में जहां भी मंटो के साहित्य छप रहे थे उनसे रॉयल्टी इकट्ठा कर हम मंटो की बेटियों को भेजते रहे हैं। हमने देखा कि बाजार में कई लोग जॉन एलिया के साहित्य छाप रहे हैं। उनके संरक्षक प्रकाशक होने के नाते हमने उन्हें पत्र भेज कर सवाल पूछा कि आप किस व्यवस्था के तहत ये पुस्तकें प्रकाशित कर रहे हैं। एनी बुक्स ने बड़ी बेतकल्लुफी से उलटे हमसे ही सवाल किया कि हम किस व्यवस्था के तहत उनसे सवाल पूछ रहे हैं। अदिति का कहना है कि प्रकाशन के क्षेत्र में ऐसा गैरपेशेवर रवैया बहुत घातक है। वाणी प्रकाशन को जॉन एलिया के साहित्य का संरक्षण हासिल है और हम पूरे कायदे-कानूनों के साथ ही काम करना चाहते हैं। इस गैरपेशेवर रुख के खिलाफ हमने एनी बुक्स को नोटिस भेजा है। इस कानूनी नोटिस के जरिए हम पूरे मामले को वैधानिक बहस में लाना चाहते हैं।
इस मुद्दे पर एनी बुक्स प्रकाशन के निदेशक पराग अग्रवाल का कहना है कि हमारे पास वाणी प्रकाशन का पत्र आया था। हमने उनसे यही कहा कि आपके पास जो संरक्षण अधिकार हैं हम उसे देखना चाहते हैं। पराग अग्रवाल ने कहा कि फिलहाल कोई कानूनी नोटिस मेरे हाथ नहीं आया है। उसके मिलने और देखने के बाद ही मैं आगे की कोई प्रतिक्रया दे पाऊंगा।
गौरतलब है कि उर्दू के मकबूल शायर जॉन एलिया का जन्म 14 दिसंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था। आठ नवंबर 2004 को इन्होंने दुनिया को अलविदा कहा था। विभाजन के बाद पाकिस्तान के हुए जॉन एलिया ने भारत के अपने जन्मस्थान से नाता जोड़े रखा था। हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों जगहों पर खासकर युवाओं के बीच इनकी शायरी को लेकर दीवानगी है और इन दिनों ये सबसे ज्यादा पढ़े जानेवाले शायरों में शुमार हैं।