कुंभ संक्रांति 2018: पवित्र नदियों में स्नान के साथ है दान-पुण्य की मान्यता, जानें क्या है इस दिन का महत्व
सूर्य के मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करने पर कुंभ संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार ग्यारहवें महीने की शुरुआत माना जाता है। कुंभ संक्रांति का पर्व हिंदुओं के लिए खास माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सभी देवता पवित्र नदियों में आकर स्नान करते हैं। कुंभ संक्रांति के पर्व पर ही कुंभ मेला लगता है। प्रत्येक 12 साल में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। अंग्रेजी तिथि के अनुसार कुंभ संक्रांति 12 फरवरी को है। हिंदू धर्म में सबसे प्रमुख मकर संक्रांति को माना जाता है और उसके बाद कुंभ संक्रांति को पुण्य कर्मों के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना और दान देना शुभ माना जाता है।
सूर्य के इस गोचर से कुंभ राशि के साथ सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। कई बार इसके शुभ और अशुभ लक्षण देखने को मिलते हैं। इस दिन सूर्य पूजा का अधिक महत्व माना जाता है। सूर्य को सौरमण्डल में नवग्रहों का स्वामी माना जाता है। 12 फरवरी को सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश कर रहा है, फिर 14 फरवरी तक कुंभ में रहने के बाद मीन राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के कुंभ राशि में आने के कारण कुंभ संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। कुंभ संक्रांति का पुण्य काल 12 फरवरी को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से शुरु होकर शाम 6 बजकर 5 मिनट तक रहेगा।
कुंभ संक्रांति के दिन खाद्य वस्तुओं, वस्त्रो और ब्राह्मणों को दान करने से दोगुना पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए गंगा माता और सूर्य देव का पूजन किया जाता है। यदि गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी में स्नान संभव नहीं हो तो सादे पानी में तुलसी के पत्ते डाल कर भी स्नान किया जाता सकता है। इससे जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। संक्रांति के दिन सुबह सूर्य को अर्घ्य देना और उनके बीज मंत्र का जाप करना लाभदायक माना जाता है। आदित्य ह्रदय स्रोत का पाठ भी किया जा सकता है।