कैराना उपचुनाव परिणाम 2018: मोबाइल के सिर्फ एक मैसेज ने कैसे ढा दिया बीजेपी पर कहर, जयंत चौधरी ने किया खुलासा

कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का एक साथ आना विपक्ष के लिए संजीवनी सा बनकर आया है। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि इस सियासी दोस्ती की शुरूआत महज एक मैसेज से हुई। आरएलडी नेता जयंत चौधरी बताते हैं, “मैंने उन्हें सिर्फ एक मैसेज भेजा, एक घंटे के अंदर उन्होंने मुझे कॉल किया, हमारी मुलाकात के लिए भूमिका तैयार हो चुकी थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश के दो सियासी परिवारों की की विरासत संभाल रहे इन दो नेताओं के बीच तीन घंटे की लंबी चौड़ी मुलाकात हुई। इस मुलाकात के बाद ही साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण झेल रहे कैराना में एसपी-आरएलडी की सियासी दोस्ती पक्की हुई। इसके बाद चाहे स्थानीय नेताओं के बगावत को दबाना हो, उन्हें विश्वास में लेना हो या फिर गांव-गांव घुमकर इस गठबंधन के बीच में माहौल तैयार करना जयंत चौधरी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। न्यूज अठारह की एक रिपोर्ट के मुताबिक आरएलडी के महासचिव त्रिलोक त्यागी कहते हैं, “जयंत ने पहल की और राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया, यह अखिलेश के बड़े दिल और जयंत चौधरी की राजनीतिक निपुणता की वजह से ही गठबंधन वजूद में आ सका।”

हालांकि बावजूद इसके दोनों का साथ आना संभव नहीं था। अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव और जयंत चौधरी के पापा अजित सिंह के बीच लंबी राजनीतिक खटास थी। इसलिए ऐसा उपाय किया जाना था ताकि दोनों दलों की आन-बान बरकरार रहे। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं, ” शानदार दांव लगाया गया, इन लोगों ने उम्मीदवार के रूप में तबस्सुम हसन को चुना, हालांकि वो समाजवादी पार्टी की नेता थीं, लेकिन उन्होंने चुनाव आरएलडी के चुनाल चिह्न हैंड पर लड़ा, दरअसल इस समझौते में दोनों ही दलों का ‘स्वाभिमान’ बरकरार रहा।”

हालांकि जयंत चौधरी कहते हैं कि दोनों दलों के साथ आने के पीछ बड़ा राजनीतिक मकसद है। जयंत चौधरी बताते हैं, “हम लोगों ने महसूस किया कि बीजेपी समाज के लिए खतरा है, ये किसान विरोधी सरकार थी, जिसे हराना जरूरी था, अखिलेश और मैं कुछ दिनों से संपर्क में थे, हम लोगों ने महसूस किया कि ये मौका है जब हमलोग चीजें बदल सकते हैं।”

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