कोरेगांव हिंसा से जुड़ी गिरफ्तारी पर SC का आदेश: पांचों को रखा जाए नजरबंद, रिमांड पर नहीं ले सकेगी पुलिस
सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव मामले में की गई पांच गिरफ्तारियों पर बुधवार (29 अगस्त) को बड़ा आदेश दिया। कोर्ट ने कहा है कि गिरफ्तार किए गए पांचों लोगों को अगली सुनवाई तक नजरबंद (हाऊस अरेस्ट) रखा जाएगा। कोर्ट ने इसी के साथ स्पष्ट किया कि पांचों को रिमांड पर नहीं लिया जाएगा। ऐसे में कोर्ट का यह आदेश पुणे पुलिस के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। अब इस मामले में अगली सुनवाई अगले गुरुवार को होगी, जबकि आगामी मंगलवार तक महाराष्ट्र सरकार को इस बाबत कोर्ट को जवाब देना होगा।
आपको बता दें कि माओवादियों से कनेक्शन के मामले में बुधवार को देश के पांच राज्यों में विभिन्न जगहों पर पुणे पुलिस ने छापेमारी की थीं। पुलिस ने उस दौरान वामपंथी विचारकों व सामाजिक और मानवाधिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। इन पांच लोगों में वरवरा राव, अरुण पेरेरा, गौतम नवलखा, वेरनोन गोन्जाल्विस और सुधा भारद्वाज के नाम हैं। इन सभी को अलग-अलग जगहों से गिरफ्तार किया गया था।
कोर्ट के आदेश के बाद पुणे पुलिस ने भी बुधवार शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस की। पुलिस ने कहा कि उसे दस्तावेजों से साजिश के बारे में पता लगा था। गिरफ्तार किए पांचों लोगों पर युवाओं को उकसाने का आरोप है। पुलिस के पास आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, पुणे पुलिस ने इस मामले में मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। गिरफ्तार किए गए पांचों लोग अलग-अलग संगठन से हैं। वे नक्सलियों से सहानुभूति रखते थे।
उधर, दिल्ली हाईकोर्ट ने नवलखा की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को कहा कि उसे सभी दस्तावेजों की अनुवादित प्रतियों का पूरा सेट नहीं मिला। कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस से पूछा कि गिरफ्तारी का आधार बताने वाले दस्तावेजों का मराठी भाषा से अनुवाद क्यों नहीं किया गया? यह दस्तावेज नवलखा को क्यों नहीं दिए गए? दस्तावेज कब मिलेंगे? यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है।
कोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया था कि सुनवाई से पहले नवलखा दिल्ली से बाहर न ले जाया जाए। उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के दस्तावेज मराठी में हैं, इसलिए वे स्पष्ट नहीं हैं। नागरिक अधिकार समूह पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स द्वारा जारी बयान में नवलखा ने कहा, “यह पूरा मामला इस प्रतिशोधी और कायर सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ राजनीतिक चाल है, जो भीमा कोरेगांव के असली दोषियों को बचाना चाहती है। वह इस तरह कश्मीर से लेकर केरल तक अपनी नाकामियों और घोटालों से ध्यान बंटाना चाहती है।”