क्या है ई-कॉमर्स में डार्क पैटर्न डिजाइन? किस तरह से कंज्यूमर को करता है गुमराह, जानें

केंद्र सरकार डार्क पैटर्न के नाम से जानी जाने वाली डिजाइन रणनीतियों के मुद्दे को समझने की दिशा में काम कर रहा है. यह एक ऐसा पैटर्न है जो डिजिटल कंज्यूमर एक्सपीरियंस पर हावी हो रहा है. केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रल्हाद जोशी बुधवार को नई दिल्ली में एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता करेंगे. इस बैठक में डिजिटल इकोनॉमिक स्पेस के बड़े स्टेकहोल्डर्स एक साथ लाए जाएंगे. इस बैठक का आयोजन कंज्यूमर्स, निगरानीकर्ताओं और सांसदों की बढ़ती चिंताओं के जवाब में किया जा रहा है, जो कंज्यूमर बिहेवियर को प्रभावित करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल की जाने वाली भ्रम पैदा करने वाली डिजाइन तकनीकों के बारे में हैं.
इस बैठक में बड़े क्षेत्रों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, जिनमें फूड डिलिवरी (स्विगी, जोमैटो, बिगबास्केट), ट्रेवल और ट्रांसपोर्ट (मेकमायट्रिप, पेटीएम, ओला, यात्रा, उबर, ईजमाईट्रिप, क्लियर ट्रिप), ई-कॉमर्स और इलेक्ट्रॉनिक्स (अमेज़ॅन, फ्लिपकार्ट, एप्पल), फार्मास्यूटिकल्स (1एमजी.कॉम, नेटमेड्स, मेडिका बाजार), रिटेल (रिलायंस रिटेल लिमिटेड), और मेटा, व्हाट्सएप, इंडिगो एयरलाइंस, इंडियामार्ट, जस्टडायल, थॉमस कुक और सरकार समर्थित ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) शामिल हैं.
इसके अलावा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एनएलयू), स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन (वीसीओ) और अग्रणी उद्योग निकाय भी इसमें शामिल होंगे.
क्या है डार्क पैटर्न?
डार्क पैटर्न टर्म पहली बार 2010 में यूके आधारित यूजर एक्सपीरियंस डिजाइनर हैरी ब्रिगनल द्वारा स्थापित की गई थी. यह यूजर इंटरफेयरेंस को संदर्भित करता है, जिसे जानबूझकर कंज्यूमर को गुमराह करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस डार्क पैटर्न का इस्तेमाल रिटेल से लेकर ट्रेफल, हेल्थ और यहां तक कि सोशल मीडिया पर देखा जाता है.
इसका एक उदाहरण “स्नीक इंटू बास्केट” (sneak into basket) डिजाइन है, जहां यूजर की ऑनलाइन शॉपिंग कार्ट में बिना किसी सहमति के चुपचाप कोई एक्स्ट्रा आइटम जोड़ दिया जाता है. वहीं एक अन्य रणनीति कुकीज या फिर सब्स्क्रिप्शन लेने के लिए एक ब्राइट कलर का बड़ा ‘एक्सेप्ट बटन’ प्रस्तुत करना है और रिजेक्ट का ऑप्शन छिपा देना या फिर उसे छोटा कर देना है. इस तरह की इंटरफेस ऑप्शन एक्सीडेंटल नहीं हैं बल्कि ये केलकुलेटिड तरीके से उन ऑप्शन को निर्देशित करता है जिससे कंज्यूमर की कीमत पर कंपनी को फायदा पहुंच सके.
डार्क पैटर्न में कुछ छिपी हुई कीमतें भी हो सकती हैं जो अंत में चेकआउट के वक्त ही नजर आती हैं. हालांकि, वे भले ही कानून के दायरे में रहते हैं लेकिन वो एक ऐसे ग्रे एरिया में काम करते हैं, जिससे मौजूदा कंज्यूमर प्रोटेक्शन लॉ को चुनौती दी जा सकती है.
इसे रेगुलेट करना क्यों है मुश्किल
भारत समेत कई देशों में इस तरह का कोई कानून नहीं है जो इस ग्रे एरिया को नियंत्रित करने में मदद कर सके. जैसे कि भारत कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 के तहत अनुचित व्यापार प्रथाओं पर प्रतिबंध है, लेकिन आपको साबित करना होगा कि इसके लिए किसी पैटर्न का इस्तेमाल किया गया है या फिर ऐसा जानबूझकर किया गया है और इससे किसी का नुकसान हुआ है. हालांकि, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर यह मुश्किल हो जाता है क्योंकि यहां पर यूजर इंटरेक्शन तेज होता है.
2022 में गूगल और फेसबुक दोनों पर ही ईयू और फ्रेंच डेटा प्रोटेक्शन लॉ के तहत जुर्माना लगाया गया था क्योंकि यूजर के लिए कुकीज को रिजेक्ट कर पाना मुश्किल था और इस वजह से उन्हें कुकीज को एक्सेप्ट करना पड़ता था.