खेलः असली विजेता तो दृष्टिहीन क्रिकेटर ही

मनोज चतुर्वेदी
भारत ने 2014 की तरह अपना जलवा बनाए रखकर दृष्टिहीन विश्व कप क्रिकेट पर कब्जा जमा लिया। उन्होंने फाइनल में अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी टीम पाकिस्तान को दो विकेट से हराया। इस विश्व कप की शुरुआत 1998 में भारत में ही हुई और इसके फाइनल में पाकिस्तान को हराकर दक्षिण अफ्रीका के चैंपियन बनने को छोड़ दें तो बाकी चारों विश्व कपों के फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच ही खेले गए हैं। इनमें से आखिरी दो 2014 और 2018 के विश्व कपों पर भारत ने कब्जा जमाया है। भारत को फाइनल में जीत दिलाने में सुनील रमेश ने 93 रन बनाकर अहम भूमिका निभाई।

सुनील रमेश इससे पहले बांग्लादेश के खिलाफ ग्रुप मैच की जीत में भी 57 गेंद में 105 रन बना चुके थे। इसमें उन्होंने 17 चौके लगाए थे। इस मैच में कप्तान अजय रेड्डी ने भी शतक जमाया था। इससे पहले शुरुआती दो मैचों में भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाकर मैन आॅफ द मैच बने दीपक मलिक के श्रीलंका के खिलाफ 179 रन थे। पाकिस्तान के खिलाफ जीत में अहम भूमिका निभाने से भी वे मैन आॅफ द मैच बने। कहने का मतलब है कि भारत के इस विजयी अभियान में सुनील रमेश, दीपक मलिक और कप्तान अजय रेड्डी ने अहम भूमिका निभाई। इन तीनों में एक समानता है कि इनका जन्म सामान्य बच्चे की तरह हुआ और यह किसी दुर्घटनावश दृष्टिहीन हो गए। सुनील रमेश के बचपन में क्रिकेट खेलते समय एक तार का टुकड़ा आंख में जाने से उनकी रोशनी चली गई और दूसरी आंख भी प्रभावित हो गई। इसी तरह सोनीपत में जन्मे दीपक मलिक भी सामान्य बच्चा होने के कारण सामान्य स्कूल में कक्षा छह में पढ़ते थे, लेकिन दिवाली पर एक रॉकेट उनकी दाहिने आंख में लग गया, जिससे पूरी तरह रोशनी चली गई और दूसरी आंख प्रभावित हो गई। वहीं कप्तान अजय रेड्डी की आंख में संक्रमण होने की वजह से रोशनी गई।

यही तीन नहीं बल्कि टीम के अन्य कई सदस्य भी किसी न किसी दुर्घटनावश आंख की रोशनी खोने वाले हैं। इस तरह के हादसे का शिकार होने वाले व्यक्ति अपने को क्रिकेट जैसे खेल में इस तरह पारंगत करते हैं कि वे अपने देश को विश्व चैंपियन बना देते हैं। इसलिए ये खिलाड़ी असल हीरो हैं। लेकिन इनके विश्व कप जीतकर लौटने पर देशवासियों में वह जज्बा नहीं दिखा, जो कि कपिलदेव या महेंद्र सिंह धोनी के विश्व चैंपियन बनने पर दिखा था। यह सही है कि भारत के विश्व चैंपियन बनने की खबर अखबारों में सुर्खियां बनीं, लेकिन फाइनल से पहले के मैचों के बारे में कहीं कोई खबर नहीं थी। इन वास्तविक हीरो को सही महत्त्व देने का लाभ पूरे समाज को ही मिलेगा। लेकिन लगता है कि हम इनको सम्मान देने के मामले में थोड़े पिछड़े हुए हैं। टीम इंडिया की तरह यह भारतीय टीम भी अपना जलवा दिखाने में पीछे नहीं है। वह अब तक दो बार दृष्टिहीन विश्व कप जीत चुकी है। इसके अलावा भारतीय टीम 2012 और 2017 में दृष्टिहीन टी-20 विश्व चैंपियनशिप भी जीत चुकी है। यही नहीं भारत ने 2015 में टी-20 एशिया कप भी जीता है। पाक ने 2002 और 2006 में विश्व कप जरूर जीता है, लेकिन 2012 के बाद से भारत ने अपना दबदबा बनाया हुआ है, इसलिए वह सही मायनों में चैंपियन है।

टीम चुनने का तरीका है अलग

इसमें खेलने वाली टीमों में खिलाड़ी तो 11 ही खेलते हैं, लेकिन टीम में तीन श्रेणी के खिलाड़ी शामिल किए जाते हैं। टीम में बी-1 के चार, बी-2 के तीन और बी-3 के चार खिलाड़ी खिलाना जरूरी है। बी-1 का मतलब है पूणर्त: दृष्टिहीन, बी-2 का मतलब है आंशिक दृष्टिहीन और बी-3 की मतलब है थोड़ा बहुत देखने वाला खिलाड़ी। बी-1 खिलाड़ी को एक रनर दिया जाता है और वह जितने रन बनाता है, उसके दोगुने रन उसके खाते में जोड़े जाते हैं। बी-2 खिलाड़ी भी चाहें तो वे रनर ले सकते हैं। मैच में फील्डिंग करते समय हर समय चार बी-1 खिलाड़ियों का रहना जरूरी है। सभी श्रेणी के खिलाड़ी हाथों में अलग-अलग रंगों के बैंड बांधे रहते हैं।

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