गर्मियों में 60 डिग्री तापमान पर ट्रेन दौड़ा रहे रेलवे ड्राइवर, ऐसी होती है लोको पायलट की जिंदगी
भारतीय रेलवे समय के साथ अपडेट होने के दावे करती रही है, लेकिन ट्रेन दौड़ाने वाले ड्राइवर यानी लोको पायलट की जिंदगी में खास फर्क नहीं आया है। रेलवे ड्राइवरों को उन हालातों से जूझना पड़ता है जिनके बारे में यात्रियों को शायद ही अंदाजा होता हो। पिछले कुछ दिनों में कुछ अखबारों ने रेलवे ड्राइवरों की जिंदगी की कठिनाइयों को उजागर करने वाली सच्चाइयां प्रकाशित की हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लू-लपट वाला गर्मी का मौसम रेल चालकों के लिए सबसे ज्यादा मुसीबतें लेकर आता है। वजह बाहर और इंजन की केबिन के तापमान में अंतर है। कई रेल चालक नाम न छापने की शर्त पर मीडिया को अपनी दिक्कतें बता चुके हैं, जिनमें यह समस्या भी एक है। जानकार भी मानते हैं कि रेल इंजन का तापमान बाहर के मुकाबले करीब 20 डिग्री और केबिन का तापमान लगभग 5 से 10 डिग्री ज्यादा होता है। अगर बाहर का तापमान 45 डिग्री है तो मानकर चलिए कि इंजन की केबिन का तापमान 55 डिग्री हो सकता है।
इस तापमान में रेल चालकों के लिए ज्यादातर इंजनों में वातानुकूलित सुविधा का अभाव उनके लिए बीमारियों का कारण बन रहा है। जानकारों की मानें को देश के कुछ इलाकों में गर्मियों के सीजन में इंजन की केबिन का तापमान 60 डिग्री तक चला जाता है और ऐसी भीषण गर्मी में रेल चालकों को यात्रियों का ख्याल रखते हुए उनकी मंगलमय यात्रा पूरी करनी करने के लिए अपनी जान पर खेलना पड़ता है।
साउंड प्रूफ केबिन और टॉयलेट भी नहीं
पिछले दिनों राजस्थान में ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन का एक सेमिनार हुआ जिसमें रेल चालकों की समस्याओं को प्रमुखता से रखा गया। इस सेमीनार के जरिये पता चला के देश की ज्यादातर ट्रेनों के इंजनों में टायलेट तक की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में ड्राइवरों को किस हाल से गुजरना पड़ता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। एक और बड़ी समस्या यह है कि इंजनों की केबिन साउड प्रूफ न होने से रेलवे ड्राइवरों को ऊंचा सुनने की बीमारी होना आम हो गया है।
जानकारों के मुताबिक रेल चालकों को इंजन में लगी 6 मोटरों से होने वाली कर्कस ध्वनि लगातार सुनने के लिए मजबूर होना पड़ता है। रेल चालकों की समस्याओं संबंधी वीडियो भी सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहे हैं। हालांकि अभी सरकार की तरफ से रेल चालकों की इन बुनियादी समस्याओं के निदान के लिए कोई ठोस आश्वासन नहीं आया है।