गुजरात का सेमी फाइनल और ममता का सियासी नुस्खा
गुजरात के बाद राजस्थान बनेगा भाजपा और कांग्रेस के बीच सियासी जंग का मैदान। सूबे की दो लोकसभा सीटों का उपचुनाव जो होना है। बेशक चुनाव आयोग ने तारीख का एलान अभी तक नहीं किया है। पर जानकार जनवरी में तय मान रहे हैं। गुजरात से सटा है राजस्थान। सो गुजरात के नतीजों का पड़ोसी राज्य की दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव पर असर न पड़े, कैसे संभव है? राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव भी होना है। लिहाजा दो लोकसभा सीटों का उपचुनाव और अहम हो जाएगा। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है इन सीटों को। पिछले आम चुनाव में दोनों जगह जीत भी भाजपा की हुई थी। तभी तो वसुंधरा दोनों की हर विधानसभा सीट का एक दौरा तो कर भी चुकी हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करना भी था मकसद। दोनों संसदीय क्षेत्रों की समस्याओं को सुलझाने पर भी अचानक फोकस बढ़ा दिया है। पार्टी ने भी हर विधानसभा क्षेत्र के लिए पहले से ही प्रभारी तैनात कर दिए हैं। मंत्रियों का भी जमकर उपयोग शुरू हो गया है। इन तैयारियों से कांग्रेसी खेमे में हलचल बढ़ गई है। पार्टी के सूबेदार सचिन पायलट तो पहले से ही धर्मसंकट में फंसे हैं। उन्हीं की रही है अजमेर सीट। पिछली बार हार गए थे तो कायदे से तो उपचुनाव में भी उन्हें ही कूदना चाहिए। पार्टी में उनका विरोधी गुट भी इसी मंशा से सक्रिय है। पर सचिन के करीबी फिलहाल सचिन की सकुचाहट के संकेत दे रहे हैं। खुद सचिन ने अपनी तरफ से न इनकार किया है और न दिलचस्पी जताई है। वैसे भी उनका मकसद तो विधानसभा चुनाव लड़ कर कांग्रेस की सरकार बनने की सूरत में मुख्यमंत्री पद पाने का ही होगा।
सियासी नुस्खा
ममता बनर्जी ठहरीं अपनी धुन की पक्की। भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की लाख कोशिश करे पर ममता अल्पसंख्यकों का मोह छोड़ने से रहीं। भाजपा और संघ परिवार उन पर मुसलमानों के तुष्टिकरण का आरोप लगा रहे हैं। ममता को कोई परवाह नहीं। अयोध्या कांड की 25वीं बरसी के मौके पर छह दिसंबर को उन्होंने फिर साफ कर दिया कि वे पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करती रहेंगी। अगर ऐसा करना तुष्टिकरण है तो भी उन्हें कबूल है। वे चूक क्यों करें? अल्पसंख्यक वोट बैंक ने ही तो वाम मोर्चे का दुर्ग ध्वस्त कर ममता को सत्ता के शिखर पर पहुंचाया। कोलकाता में ममता ने भाजपा का नाम लिए बिना खूब खिंचाई की। लगे हाथ स्पष्ट कर दिया कि सूबे के तीस फीसद अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना उनका दायित्व है। आरोपों से वे डरने वाली नहीं। भाजपा पर असहिष्णुता को हथियार बनाने का आरोप लगाते हुए लोगों से सहिष्णुता बरतने की अपील करना भी नहीं भूलीं। पुराना विलाप भी कर दिया कि उनकी पार्टी के नेता अगर केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के खिलाफ मुंह खोलते हैं तो सीबीआइ और दूसरी एजंसियां उन्हें गिरफ्तार करने की धौंस देती हैं। अपनी एजंसियों को केंद्र सरकार सियासी हथियार की तरह कर रही है इस्तेमाल। पर वे धमकियों से डरने वाली नहीं। अपनी आखिरी सांस तक गलत नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करती रहेंगी।