गुजरात चुनाव 2017: कांग्रेस के पक्ष में हैं यह 5 बड़ी बातें
गुजरात विधानसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान के बीच राजनीतिक पंडितों के बीच नतीजों को लेकर बहस जारी है। एग्जिट पोल्स भले ही बीजेपी की सत्ता में वापसी की संभावना जता रहे हों, लेकिन कांग्रेस की हालत पहले से मजबूत है, इस बात पर कई राजनीतिक पंडित पूरी तरह सहमत हैं। कांग्रेस ने तमाम आपसी गुटबाजी से उबरते हुए इस बार अपेक्षाकृत बेहतर ढंग से चुनाव प्रचारों को अंजाम दिया है। चुनावों के नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे। ऐसे में आइए डालते हैं उन बिंदुओं पर नजर, जिनके मुताबिक कांग्रेस इस सियासी मुकाबले में बीजेपी को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है।
राज्यसभा जीत से मिली ताकत: राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस नेता अहमद पटेल की एक सीट के खिलाफ बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। पार्टी चीफ अमित शाह ने पूरी कोशिश की कि अहमद पटेल किसी भी हालत में यह चुनाव न जीत पाएं। कई कांग्रेसी विधायक टूटकर बीजेपी के समर्थन में आ गए। कांग्रेस पर इतना दबाव बना कि पार्टी ने किसी खरीद-फरोख्त की आशंका को खत्म करने के लिए अपने विधायकों को दूसरे राज्य के एक रिजॉर्ट भेज दिया। विधायक वापस लौटे भी तो बेहद कड़ी निगरानी में। वोटिंग के दौरान भी हाई वोल्टेज ड्रामा हुआ। कई विसंगतियों के बावजूद कांग्रेस अहमद पटेल की सीट बचाने में कामयाब रही। मामला भले ही एक सीट का हो, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि इस जीत ने राज्य में कांग्रेस के टूटे हुए मनोबल को वापस उठाने में बड़ी भूमिका निभाई।
दलित और पाटीदार नेताओं का मिला साथ: बीजेपी के धुर विरोधी माने जाने वाले दलित और पाटीदार नेता अबकी कांग्रेस के साथ नजर आ रहे हैं। पाटीदारों को आरक्षण देने को लेकर समुदाय के बड़े नेता हार्दिक पटेल के साथ पार्टी का समझौता हो चुका है। हार्दिक पटेल तो कांग्रेस के साथ हैं ही, वहीं दलित नेता जिग्नेश मेवानी भी पार्टी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। आरक्षण को लेकर पाटीदारों का एक तबका बीजेपी सरकार से नाराज बताया जाता है। राज्य में दलितों के साथ हुई हिंसा की कुछ घटनाओं की वजह से भी सत्ताधारी पार्टी की आलोचना हो चुकी है। ऐसे में इन दो समुदायों के नेताओं का कांग्रेस के पक्ष में झुकाव पार्टी के लिए मददगार साबित हो सकता है।
सधा हुआ चुनाव प्रचार: कांग्रेस का चुनाव प्रचार इस बार अपेक्षाकृत ज्यादा आक्रामक और सधा हुआ नजर आता है। सोशल मीडिया पर पार्टी का बदला हुआ रुख नजर आ रहा है। बीजेपी ट्रोल्स को जवाब देना हो या मोदी सरकार पर हमला, दोनों ही मोर्चों पर कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ज्यादा आक्रामक नजर आती है। गुजरात में मंदिरों के चक्कर लगाते और कई रैलियां कर चुके राहुल गांधी टि्वटर पर पहले से ज्यादा सक्रिय दिखते हैं। हर रोज नया ट्वीट करके सत्ताधारी पार्टी को घेरते रहते हैं। वहीं, जीएसटी टैक्स को गब्बर सिंह टैक्स बताना, शोले थीम पर रैलियां निकालना आदि कांग्रेस की ओर से कुछ इनोवेटिव कैंपेन नजर आए। अभी तक इस तरह का व्यवस्थित चुनाव कैंपेन पूर्व में बीजेपी द्वारा ही किया जाता दिखा है। कहना गलत न होगा कि थोड़ा ही सही, लेकिन कांग्रेस ने भी खुद को व्यवस्थित और बेहतर ढंग से पेश करना शुरू कर दिया है।
राहुल गांधी का बदला अंदाज: कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर काबिज होने जा रहे राहुल गांधी का बिलकुल बदला हुआ अंदाज उनके राजनीतिक विरोधियों को चौंका रहा है। राहुल अब पहले के मुकाबले ज्यादा मुखर नजर आ रहे हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अब उनकी लोगों से संवाद करने की शैली पहले से बेहतर नजर आ रही है। किसी चुनावी रणनीति की वजह से ही सही, लेकिन आम जनता को उनके निजी जीवन से जुड़े पहलू अब पहले के मुकाबले ज्यादा नजर आने लगे हैं। राहुल गांधी अपने डॉगी पिद्दी को सोशल मीडिया पर हीरो बना चुके हैं। वह मार्शल आर्ट्स भी जानते हैं, इसका खुलासा हाल ही में हुआ है। टि्वटर पर उनकी लोकप्रियता बढ़ी है, इस बात को लेकर पक्ष और विपक्ष में बातें सामने आ चुकी हैं।
एंटी एनकंबेंसी फैक्टर, जीएसटी-नोटबंदी: दो दशक से ज्यादा वक्त से सत्ता पर काबिज बीजेपी के खिलाफ एंटी एनकंबेंसी फैक्टर भी कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है। पहले पाटीदार आंदोलन, फिर दलितों के खिलाफ हिंसा ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया है। शायद तभी आनंदीबेन पटेल को सीएम की कुर्सी भी गंवानी पड़ी। बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल की भरपूर कोशिश की, लेकिन पार्टी से नाराज चल रहा एक बड़ा वर्ग कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। गुजरात में आई बाढ़ के वक्त कथित तौर पर बेहतर राहत-कार्य न होने को भी कांग्रेस अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रही है। वहीं, केंद्र सरकार के नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों ने बीजेपी के पारंपरिक कारोबारी वोटर्स को नाराज किया है। ये फैक्टर्स भी कांग्रेस को फायदा पहुंचा सकते हैं।