गुजरात में राम और पाकिस्तान ने बचाई साख

कांग्रेस के जातीय ध्रुवीकरण की तुलना में भाजपा ने धार्मिक ध्रुवीकरण की अपनी पुरानी परिपाटी को गुजरात में भी आजमाया। गुजरात में कोई भी चुनाव हो यहां मसला हिंदू-मुसलमान का हो जाता है। राम मंदिर मुकदमे को टालने की कपिल सिब्बल की कोशिश से जहां हिंदू एकजुटता को बढ़ावा मिला, वहीं मणिशंकर अय्यर के घर हुई मीटिंग के खुलासे के बाद नरेंद्र मोदी ने बड़ी चालाकी से यह प्रचारित करना शुरू किया कि पाकिस्तान भी गुजरात में भाजपा को हराना चाहता है। जम्मू-कश्मीर के नेता सलमान निजामी के तमाम पुराने ट्वीट को प्रचारित कर भाजपा ने यह साबित करने की कोशिश की कि कांग्रेस के नेता देश विरोधी तत्वों का समर्थन करते हैं।

गुजरात में विकास के मुद्दे ने चुनावी तैयारियों की शुरुआत में ही चुप्पी साध ली थी। राम मंदिर का मुद्दा और पाकिस्तान की दखलंदाजी का सवाल उछालकर भाजपा ने अपना गढ़ बचा लिया। बची-खुची कसर गुजराती अस्मिता ने पूरी कर दी। कांग्रेस के लिए मणिशंकर अय्यर का ‘नीच’ वाला बयान और कपिल सिब्बल की ओर से राम मंदिर मसले पर पैरवी में उतरना बुरी रणनीति साबित हुई। गुजरात चुनाव में नोटबंदी-जीएसटी की नाराजगी के बीच कांग्रेस ने विभिन्न वर्गों के युवा नेताओं हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को लेकर जातिगत समीकरण साधने की पुरजोर कोशिश की लेकिन वह इसके बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की विशेष रणनीति के आगे कामयाब नहीं हो सकी। 1982 के बाद पहली बार गुजरात चुनाव में जातिगत का मसला जोरदार उछला।

मणिशंकर अय्यर का नीच वाला बयान : ऐन चुनाव अभियान के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिशंकर अय्यर का ‘नीच’ कहना और कपिल सिब्बल द्वारा राम मंदिर मामले की पैरवी में मामले को आगे टालने की अपील करना भी कांग्रेस के लिए भारी पड़ गया। मोदी ने अय्यर के इस बयान को लपक लिया और गुजरात के चुनाव अभियान में इस मसले को जमकर उठाया और इसे अपनी गरीबी और जाति से जोड़ दिया। सोनिया गांधी के मौत के सौदागर वाले बयान से 2007 की तरह 10 साल बाद कहानी दोहराई गई। कठिन इम्तिहान में 34 रैलियां : 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के लिए गुजरात विधानसभा का चुनाव दूसरा कठिन इम्तिहान साबित हुआ। प्रधानमंत्री ने गुजरात में 34 रैलियां की। गुजरात का चुनाव नरेंद्र मोदी के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का प्रबंधन इस चुनाव की खास विशेषता रही। शाह ने बूथ मैनेजमेंट पर बाकी पेज 8 पर विशेष रणनीति के साथ कार्य किया।

पाटीदारों में सेंध : भाजपा ने हार्दिक पटेल के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफलता पाई। पार्टी ने 182 में से 52 पाटीदारों को चुनाव मैदान में उतारा। हार्दिक पटेल के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने यह चुनावी रणनीति तैयार की। इसमें उसे सफलता भी मिली। गुजराती अस्मिता : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव को गुजराती समुदाय के लिए प्रतिष्ठा का विषय बना दिया था। वह हर रैली में गुजराती अस्मिता की बात जोर-शोर से उठाते थे। उन्होंने कहा था कि यह चुनाव गुजराती समुदाय के लिए एक तरह से सम्मान का मामला है। राहुल गांधी ने मेहनत तो बहुत की, लेकिन वे बाहरी होने और हिंदी में भाषण दिया। मोदी ने अपने सभी भाषण गुजराती में दिए।

अन्य पिछड़ा वर्ग को पकड़े रही भाजपा : भाजपा ने ओबीसी वर्ग को छोड़ा नहीं। हार्दिक पटेल के आरक्षण की मांग पर आंदोलन के बाद भी भाजपा पाटीदारों के साथ खड़ी नहीं रही। अगर वह पाटीदारों के साथ खड़ी रहती तो ओबीसी वर्ग भाजपा से बिछड़ जाता। कांग्रेस रही चेहरा विहीन : गुजरात में 1995 में सत्ता गंवाने के बाद अब तक कांग्रेस वहां कोई बड़ा नेता नहीं खड़ा कर पाई है। चुनाव में एक तरह से कांग्रेस बगैर चेहरे के उतरी। अहमद पटेल को राज्यसभा में जोड़-तोड़ के जरिए जरूर पहुंचा दिया गया लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह राज्य से कांग्रेस के लिए एक बड़े नेता हो सकते थे।

जीएसटी और नोटबंदी का असर नहीं : गुजरात का व्यापारी जीएसटी एवं नोटबंदी से परेशान और नाराज जरूर था, लेकिन जब वोट देने की बात आई तो वह भाजपा को छोड़ नहीं पाया। व्यापारी समुदाय परंपरागत रूप से भाजपा का वोटर रहा है। सूरत में तमाम व्यापारी मीडिया से बातचीत में ऐसे संकेत भी दे रहे थे कि वे जीएसटी और नोटबंदी पर भले मोदी सरकार से नाराज हों, लेकिन वोट के दिन उनका मन बदल सकता है और शायद ही वे कांग्रेस को वोट दे पाएं।

 

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