गैरजरूरी बहसें

भ्रष्टाचार पर पर्दा

भाजपा ने ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ नारे के साथ 2014 के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी छवि के अनुसार इसे पुष्ट करने का प्रयास किया। लेकिन एक के बाद एक हुए खुलासों ने इस दावे पर सवालिया निशान लगा दिया है। ‘पैराडाइज पेपर’ मामले में सरकार अभी पूरी तरह संभली भी नहीं थी कि कैग के एक खुलासे ने सरकार की वित्तीय अनियमितताओं की फिर से कलई खोल दी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दी गई अपनी एक रिपोर्ट में यह बताया गया कि केंद्रीय श्रम मंत्रालय के अधीन निर्माण श्रमिकों के हितों की खातिर जमा की गई 29000 करोड़ रुपए की धनराशि में से वाशिंग मशीन और लैपटॉप खरीद लिया गया। इस निधि में से दस फीसदी धनराशि भी श्रमिकों के कल्याण के लिए उपयोग में नहीं लाई गई।

इस प्रकार का वाकया पहली बार नहीं हुआ है जब श्रमिकों के कल्याण के लिए आबंटित राशि का दुरुपयोग सामने आया है। 2015 में भी न्यायालय ने इस बात पर हैरानी जताई थी कि निर्माण श्रमिकों के लिए जमा 26000 करोड़ रुपए की राशि बिना उपयोग किए कैसे पड़ी हुई है। ऐसा संभव है कि यह मामला धन की हेराफेरी से संबंधित न हो। लेकिन यह वित्तीय अनियमितता से अवश्य जुड़ा हुआ है। अब निर्णय सरकार को लेना है कि वह इस मामले की पारदर्शी जांच कराती है या फिर महज खानापूर्ति कर इसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है!
’अतुल द्विवेदी, इलाहाबाद

गैरजरूरी बहसें

राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के बारे में सजग रहने वाले समाचार कई दिनों से बहुत चर्चा में हैं। इसी तरह फिलहाल समूचा देश ‘पद्मावती’ पर विवाद और बहस में मशगूल है। क्या सचमुच ये विषय इतने महत्त्वपूर्ण हैं? देश के सामने कई प्रश्न हैं, लेकिन उन्हें छोड़ कर कुछ गैर-महत्त्वपूर्ण मुद्दे बहस के केंद्र में हैं। जनता को देश के हर एक राजनीतिक दल का इतिहास और वर्तमान पता है। लोकतंत्र ने जब सत्ता की कमान सौंपी थी, तब किस पार्टी के नेता ने क्या काम किया था और कर रहे हैं, ये बातें जनता अच्छी तरह जानती है। जनता को काम से मतलब है।

किस समाचार को चर्चा में रखना चाहिए, ताकि उससे जनता की समस्याओं का समाधान हो सके, इसका अभ्यास मीडिया को करने की जरूरत है। इसलिए राजनीतिक विषयों के बजाय आम जनता के प्रश्नों को महत्त्व दिया जाना चाहिए। राजनीति हर दल के लिए अलग से विषय होता है। उस मार्ग पर किस तरह से चलना है, यह उन्हें बताना जरूरी नहीं होता। लेकिन जनता की समस्याओं का समाधान किया जाए, यह उन्हें बार-बार बताने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में किस विषय पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, यह साफ होता है। राजनीतिक दल चुनाव के बिना जनता तक आसानी से नहीं पहुंचते, लेकिन जनता को उन तक पहुंच कर अपनी समस्याओं का समाधान करवाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। आम जनता को रोज जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, उससे वह काफी निराश है।
’मानसी जोशी, मुंबई

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