गोरखपुर उपचुनाव: 29 साल बाद योगी आदित्यनाथ पर भारी पड़ रही पिछड़े, अति पिछड़े, दलितों, यादवों की गोलबंदी
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीटों पर कल (रविवार, 11 मार्च को) उप चुनाव होने हैं। इस दौरान सभी राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरणों को साधने में पूरा जोर लगा रखा है। गोरखपुर संसदीय सीट का चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए नाक की लड़ाई बन चुकी है। योगी पांच बार यहां का नेतृत्व कर चुके हैं। उससे पहले भी उनके गुरू और गोखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर यहां से चुनाव जीतते रहे हैं। पिछले 29 सालों से इस सीट पर गोरखनाथ मंदिर का प्रभाव हावी रहा है लेकिन पहली बार मंदिर के प्रभाव से बाहर निकलकर वहां जातीय गोलबंदी होती दिख रही है। बीजेपी ने जहां उपेंद्र दत्त शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है, वहीं सपा ने जातीय समीकरणों को साधते हुए निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने यहां से डॉ. सुरहिता करीम को उम्मीदवार बनाया है।
गोरखपुर सीट पर वैसे तो कुल 10 प्रत्याशी मैदान में हैं लेकिन लड़ाई सपा, बीजेपी और कांग्रेस के बीच है। बसपा चुनाव नहीं लड़ रही है लेकिन सपा उम्मीदवार को समर्थन का एलान किया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पिछड़ों, अति पिछड़ों, यादवों, दलितों और मुस्लिमों की गोलबंदी कर अपने उम्मीदवार के लिए किला मजबूत करने की कोशिश की है। उधर, योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा संभालते हुए बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया है।
गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में कुल 19.49 लाख मतदाता हैं। इनमें से निषाद वोटरों की संख्या करीब तीन लाख से ज्यादा है। हिन्दुस्तान के मुताबिक यहां यादव मतदाताओं की संख्या 2.25 लाख और अन्य पिछड़ी जातियों के वोटरों की संख्या करीब 1.50 लाख है। दलितों की भी आबादी अच्छी है। इस लिहाजा से माना जा रहा है कि बीजेपी और सपा के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है। पिछली बार 2014 के चुनाव में यहां 52.86 फीसदी वोट पड़े थे। योगी करीब 3.12 लाख वोटों के अंतर से जीते थे।
बता दें कि गोरखपुर संसदीय सीट पर पहली बार 1952 में हुए चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ ने 1967 में निर्दलीय चुनाव जीता था। 1970 में योगी आदित्यनाथ के गुरू अवैद्यनाथ ने भी निर्दलीय चुनाव जीता था। इस सीट पर चुनाव परिणाम 14 मार्च को आएंगे।