गोवा फिल्म फेस्टिवल 2017ः जादू जानती हैं लातिन अमेरिकी औरतें
भारत के 48 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह (गोवा) की समापन फिल्म ‘ थिंकिंग आॅफ हिम ’ भारत और अर्जेंटीना के साझा प्रयास से बनी है। फिल्म के निर्देशक पाब्लो सेजार ने दस साल पहले इस फिल्म का सपना देखा था। वे तब के वहां भारतीय राजदूत के विश्वनाथन से मिलकर कोई भारतीय सहयोगी ढूंढने गए थे। कई साल तक यह प्रोजेक्ट स्थगित रहा। दो साल पहले 2015 के गोवा फिल्म समारोह मे अर्जेंटीना में भारतीय राजदूत अमरेंद्र खटुआ ने पाब्लो सेजार को सूरज कुमार से मिलवाया और इस तरह को-प्रोडक्शन शुरू हो सका। भारत के जॉनसंस सूरज फिल्म इंटरनेशनल (नई दिल्ली) और अर्जेंटीना के सेजार प्रोडक्शन ने फिल्म का निर्माण किया है । अर्जेंटीना के ब्यूनस ऐरिस शहर में किशोर अपराधियों के सुधार गृह के स्कूल में भूगोल के शिक्षक फेलिक्स ( हेक्टर बोरदोनी) को एक दिन अचानक रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं की एक पुरानी किताब मिलती है। कविताएं पढ़ते हुए वह एक दूसरी आध्यात्मिक दुनिया में पहुंच जाता है। उसे पता चलता है कि करीब 90 साल पहले ( 6 नवंबर 1924)रवींद्रनाथ टैगोर (विक्टर बैनर्जी) पेरू जाते हुए बीमार पड़ गए थे और उन्हें ब्यूनस ऐरिस के प्लाजा होटल में रुकना पड़ा था। बाद में वे यहां की जानी-मानी लेखिका विक्टोरिया ओकंपो (एलियोनोरा वेक्सलर) के मेहमान रहे जो उनकी प्रेरणा बनीं। उसने टैगोर के रहने के लिए शहर से बाहर नदी किनारे रिश्तेदार का शानदार बंगला किराए पर लिया था ।
फेलिक्स टैगोर से इतना प्रभावित होता है कि वह शांतिनिकेतन आ जाता है जहां उसे कमली (राइमा सेन) नाम की एक युवती जीवन के नए-नए अर्थ समझाती है। फिल्म में दो समयों की दो कहानियां साथ चलती हैं। पहली वर्तमान में फेलिक्स और कमली की और दूसरी 90 साल पहले अतीत में रवींद्रनाथ टैगोर और विक्टोरिया ओकंपो के विलक्षण और अद्वितीय प्रेम की। विश्व साहित्य की दो बड़ी हस्तियों का यह मिलन ऐतिहासिक साबित हुआ। एक दिन विक्टोरिया ओकंपो की नजर कूड़ेदान में फेंके गए कुछ कागजों पर पड़ती है जिसे टैगोर ने लिखने के बाद स्याही से काटा-पीटा था। विक्टोरिया को वे डूडल्स की तरह कलात्मक लगे। उसने टैगोर को पेंटिंग बनाने को प्रोत्साहित किया। टैगोर ने विक्टोरिया की प्रेरणा से चित्रकार के रूप में एक नई यात्रा शुरू की। बाद में शांतिनिकेतन के लिए धन जुटाने के लिए विक्टोरिया नें 1930 में पेरिस मे टैगोर की पेंटिंग प्रदशर्नी लगाई। वहां से आॅक्सफोर्ड जाते समय पेरिस के रेलवे स्टेशन पर दोनों की जो मुलाकात हुई, वहीं उनकी आखिरी मुलाकात थी।
विक्टोरिया को टैगोर अपने साथ चलने का आमंत्रण देते हैं। पर उसे एक बड़ी साहित्यिक पत्रिका शुरू करने के लिए न्यूयार्क जाना है। उधर फेलिक्स कमली के लिए एक चिट्ठी छोड़कर रिक्शे पर बोलपुर स्टेशन की ओर जा रहा है। उसे जीवन का अर्थ समझ में आ गया है। उसकी विभ्रम की बीमारी भी ठीक हो गई है। वह अपनी कीमती घड़ी कलाई से उतरकर रिक्शेवाले को दे देता है।. फिल्म में टैगोर की भूमिका में विक्टर बैनर्जी ने इतना उम्दा अभिनय किया है। ‘थिंकिंग आॅफ हिमत’ रवींद्रनाथ टैगोर और विक्टोरिया ओकंपो की काव्यात्मक संवेदनाओं से बुनी गई है। 1913 में टैगोर को ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला और उनकी कविताएं दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुदित हुईं। उनकी कविताएं पढ़कर विक्टोरिया ने एक लेख लिखा – ‘द ज्वाय आॅफ रीडिंग टैगोर।’ टैगोर ने अपनी कविताओं का एक संग्रह ‘पूर्वी’ विक्टोरिया को समर्पित किया है जिसे वे भारतीय नाम विजया कहकर पुकारते थे।
विक्टोरिया अपने पति से अलग रहती है क्योंकि वह संवेदनशील नहीं है। टैगोर कहते हैं- ‘यहॉ आना वैसा ही है जैसे अंधेरे में कोई हीरा शरण ले रहा हो। तुम मुझे इसलिए प्रेम करो जो मैं हूं, इसलिए नहीं कि मैने क्या हासिल किया है।’ विक्टोरिया कहती है कि आपके करीब आने के लिए भाषा की जरूरत नहीं है। आपकी कविताएं कई भाषाओं में बात करती हैं। टैगोर जवाब देते हैं – ‘किसी के करीब आने के लिए नॉलेज की जरूरत नहीं है। लैटिन अमेरिकी औरतें जादू जानती हैं।’ वे आगे कहते हैं – ‘मेरा और तुम्हारा प्रेम उतना ही सहज है जितना कोई गीत।’ टैगोर और विक्टोरिया की पहली और आखिरी मुलाकात के दृश्य इतने सघन हैं कि अविस्मरणीय बन जाते हैं। प्रेम और काव्यात्मक संवेदनाओं से भरी हुई इस कहानी में संवाद से अधिक मौन बोलता है। 64 साल के टैगोर को 34 साल की विक्टोरिया जीने का अदम्य साहस देती है। विक्टोरिया को 7 अगस्त 1941 को 80 साल की उम्र में टैगोर के निधन का समाचार रेडियो पर सुनते दिखाया गया है। वह कार रोककर बाहर निकलती है और आसमान में ऐसे देखती है जैसे टैगोर दूर से उसे पुकार रहे हों-विजया।