गौरक्षकों को आईकार्ड बांट रही थी महाराष्ट्र सरकार, शिकायत पर रोकी कवायद
महाराष्ट्र सरकार ने पशु-कल्याण के कामों की देखरेख करने के लिए बनाई गई समिति की ताकत घटा दी है। यह समिति पिछले तीन वर्षों से गौरक्षकों को पहचान पत्र बांट रही थी। गौरक्षकों के द्वारा कथित तौर धन की उगाही करने और लोगों को परेशान करने की शिकायतें मिलने पर राज्य सरकार ने उन्हें दिए जाने वाले पहचान पत्रों पर रोक लगा दी है। स्थानीय मीडिया के मुताबिक बीते चार अगस्त को सरकार और पुलिस के बीच हुई उच्च स्तरीय बैठक में इस बाबत फैसला लेने पर राय बनी थी। बॉम्बे हाईकोर्ट के दिशा-निर्देश पर 2005 में राज्य सरकार के पशुपाल विभाग के अंतर्गत रिटायर्ड जस्टिस चंद्रशेखर धर्माधिकारी की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया था। अधिकारियों ने इस बात की चर्चा भी की कि जब सरकार पहले ही 2015 में गोवंश वध को रोकने वाले अधिनियम को निष्क्रिय कर चुकी है तो फिर ढेरों पशु कल्याण अधिकारियों की जरूरत क्यों रह गई।
पशुपालन मंत्री महादेव जनकर ने इस बात की पुष्टि की है कि समिति के द्वारा आईकार्ड जारी करने की शक्ति को निलंबित किया गया है। उन्होंने मीडिया से कहा कि फर्जी गौरक्षकों के द्वारा शक्ति के दुरुपयोग की खबरे आ रही थीं। उन्होंने कहा, ”मैंने पुलिस के सभी जिला प्रभारियों को निर्देश दिया है कि बाधा उत्पन्न करने और कार्ड के जरिये उगाही करने वाले गौरक्षों के रिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।” उन्होंने कहा कि गायों और उसके गोवंश के कल्याण के लिए कई पहल शुरू की गई हैं, इसलिए गौरक्षकों का काम है कि वे इसका समर्थन करें।
समिति के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस धर्माधिकारी ने कहा कि अगर कानून के अमल में लाए जाने के बाद भी गौरक्षकों की जरूरत बनी हुई है तो यह एक सवाल है। उन्होंने कहा कि गौरक्षकों को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हर वर्ष समिति के पास 200 से 250 पहचान पत्रों के लिए निवेदन आते हैं। उम्मीदवारों को किसी संस्था या एनजीओ की तरफ से सिफारिशी पत्र के साथ एक फॉर्म भरना होता है। इसके बाद फॉर्म को पुलिस वेरिफिकेशन के लिए भेजा जाता है और फिर सराकर के द्वारा कार्ड को मंजूरी दे दी जाती है।