गौरी लंकेश को पूर्व पति ने किया याद…उसने कहा था- मैं तुमसे ज्‍यादा दिन जिंदा रहूंगी

पत्रकार गौरी लंकेश के पूर्व पति चिदानन्द राजघट्ट द्वारा लिखा गया संस्मरण सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। गौरी लंकेश की बेंगलुरु में मंगलवार (पांच सितंबर) टाइम्स ऑफ इंडिया के अमेरिका संवाददाता चिदानन्द राजघट्ट ने गौरी के संग अपने पहले परिचय और तलाक के बाद भी जारी रही दोस्ती को बहुत ही संवेदनशील तरीके से याद किया है। चिदानन्द राजघट्ट ने लिखा है, “अगर गौरी लंकेश खुद पर लिखी श्रद्धांजलियां और तारीफें पढ़ रही होती तो हँसती, खास तौर पर जिनमें आत्मा, मृत्य के बाद जीवन और स्वर्ग इत्यादि का जिक्र है। अगर वो नहीं भी हँसती तो मुस्कराती जरूर।” चिदान्नद राजघट्ट ने लिखा है कि उन्होंने और गौरी लंकेश ने किशोरावस्था में तय कर लिया था कि स्वर्ग, नरक और पुनर्जन्म जैसी चीजें बकवास हैं। चिदानन्द लिखते हैं, “हमने ये भी तय किया था कि हम किसी को दुख नहीं पहुँचाएंगे।”

चिदानन्द राजघट्ट ने बताया है कि उनकी गौरी लंकेश से मुलाकात कर्नाटक के “नेशनल कॉलेज” में हुई थी जो तर्कवादियों की जन्मस्थली है। किशोरावस्था से ही गौरी और चिदानन्द धार्मिक गुरुओं, अंधविश्वासों, कुरीतियों पर सवाल उठाते रहे थे। चिदानन्द ने पांच साल के प्रेम के बाद गौरी से शादी की थी। हालांकि शादी के पांच साल बाद ही दोनों का तलाक हो गया। चिदानन्द के अनुसार तलाक के बाद भी दोनों “अच्छे दोस्त” बने रहे। चिदानन्द के अनुसार कॉलेज में गौरी को उनका सिगरेट पीना नापसंद था। बाद में जब उन्होंने सिगरेट पीना छोड़ दिया लेकिन तब तक गौरी खुद सिगरेट पीने लगी थीं। एक बार गौरी जब चिदानन्द के पास अमेरिका गई थीं तो उन्होंने उनसे सिगरेट पीना छोड़ने के लिए कहा। गौरी ने जवाब दिया, “….मुझे तो तुम्हारी वजह से ही सिगरेट की लत लगी!” जब चिदानन्द ने उनसे कहा कि वो उनकी सेहत की चिंता के चलते सिगरेट छोड़ने के लिए कह रहे हैं तो इस पर गौरी ने जवाब दिया, “…मैं तुमसे ज्यादा दिन जिंदा रहूंगी!”

चिदानन्द के अनुसार तलाक के बावजूद दोनों में कभी कड़वाहट नहीं आई। शादी के दौरान उनके बीच कुछ अनबन हुई लेकिन दोनों बहुत जल्द उससे आगे बढ़ गए। चिदानन्द के अनुसार जिस दिन अदालत में उनका तलाक हुआ वो एक-दूसरे का हाथ पकड़े कोर्ट पहुंचे थे और तलाक के बाद एक साथ एमजी रोड के ताज डाउन में लंच करने गये थे। चिदानन्द ने बताया है कि तलाक के बाद भी वो दिल्ली, फिर मुंबई और बाद में वाशिंगट डीसी में उनसे मिलती रहती थीं। चिदानन्द राजघट्ट ने याद किया है कि करीब आठ साल पहले जब उन्होंने अपने बेंगलुरु स्थित घर पर एक महिला को सहायक तौर पर रखा तो गौरी ने उसकी दोनों बेटियों आशा और उषा की पढ़ाई के लिए उन्हें ताकीद की थी। दोनों लड़कियों ने कॉलेज तक पढ़ा की और अब वो दोनों नौकरी करती हैं। एक बैंक में और एक एनजीओ में। चिदानन्द ने लिखा है, “गौरी लंकेश के कारण आज सैकड़ों आशा और उषा हैं।” चिदानन्द लिखते हैं, गौरी उनके लिए लेफ्टिस्ट, रेडिकल, हिंदुत्व-विरोधी और सेकुलर नहीं थी बल्कि “दोस्त, पहला प्यार और सादगी का सर्वोच्च उदाहरण” थी।

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