ग्राहकों, दुकानदारों के पसंदीदा यूपीआई पेमेंट सिस्टम पर स्कैम करने वालों की तिरछी नज़र,

अरुण कुमार, मुंबई की हमेशा व्यस्त रहने वाली सड़क पर पिछले सात साल से हर रोज़ फलों का ठेला लगाते हैं.

जीवन-यापन करने का ये कोई आसान तरीका नहीं है.

वो कहते हैं, ”रेहड़ी-पटरी पर काम करना एक चुनौती है. लूटे जाने का डर बना रहता है, मेरे पास लाइसेंस नहीं है, ऐसे में प्रशासन कभी भी आकर दुकान तोड़ सकता है.”

लेकिन पिछले चार साल में उनके काम का एक पहलू है, जो पहले से आसान हो गया है.

अरुण का कहना है, ”कोविड महामारी से पहले सब कुछ कैश में होता था. लेकिन अब हर कोई यूपीआई के ज़रिए भुगतान करता है. कोड स्कैन करिए और कुछ ही सेकेंड में भुगतान हो जाता है.”

वो कहते हैं, ”कैश को संभालने या छुट्टा देने का कोई मुद्दा ही नहीं. इसने मेरे काम और ज़िंदगी को आसान बना दिया है.”

भारत सबसे बड़ा ‘रियल टाइम पेमेंट’ मार्केट

यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) को साल 2016 में रिज़र्व बैंक और बैंकिंग इंडस्ट्री के बीच सहयोग से लॉन्च किया गया था.

ये ऐप के ज़रिए काम करने वाला पेमेंट सिस्टम है, जिससे यूज़र एक स्टेप में पैसे भेज या पा सकता है, साथ ही बिलों का भुगतान कर सकता है.

ऐसा करते वक्त बैंक डिटेल या दूसरी कोई निजी जानकारी देने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और शायद सबसे बड़ी बात ये है कि ये मुफ़्त है.

देश में ये इतना लोकप्रिय है कि भारत अब सबसे बड़ा ‘रियल टाइम पेमेंट’ मार्केट बन गया है.

इस साल मई में यूपीआई ने 14 अरब ट्रांजेक्शन दर्ज़ किए हैं, जो पिछले साल की तुलना में 9 अरब ज़्यादा हैं.

लेकिन इसकी लोकप्रियता और इस्तेमाल में आसानी ने इसे घोटालेबाज़ों के लिए भी आसान बना दिया है.

दिल्ली स्थित फ्यूचर क्राइम रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक शशांक शेखर कहते हैं, “डिजिटल पेमेंट सुविधाजनक तो हैं, लेकिन इसमें कुछ ख़ामियां भी हैं.”

शेखर कहते हैं कि घोटालेबाज़, लोगों को फंसाने के लिए कई तरह के तरीके अपनाते हैं. वो यूपीआई पिन नंबर जानने के लिए कई तरह के ट्रिक आज़माते हैं, जो पेमेंट के लिए ज़रूरी होता है.

कुछ घोटालेबाज़ों ने तो नकली यूपीआई ऐप भी बना लिया है, वो वैध बैंकिंग ऐप की नकल करके लॉगिन डिटेल और अन्य ज़रूरी जानकारियां चुरा लेते हैं.

उनका मानना है, ”जिस गति से देश में डिजिटल बदलाव हुए हैंं, दुर्भाग्य से उसी गति से डिजिटल लिटरेसी और इंटरनेट से जुड़ी सुरक्षा की जानकारियां लोगों में नहीं आ पाई है.”

वो ये भी कहते हैं कि जनवरी 2020 से जून 2023 के बीच हुई वित्तीय धोखाधड़ी के लगभग पचास प्रतिशत मामलों में यूपीआई सिस्टम का इस्तेमाल किया गया था.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, अप्रैल 2023 में ख़त्म हुए वित्तीय वर्ष में यूपीआई से जुड़े धोखाधड़ी के 95,000 से अधिक मामले सामने आए, जो पिछले साल के मामलों से 77,000 अधिक थे.

धोखाधड़ी की शिकार शिवकली की आपबीती

बिहार की रहने वाली शिवकली, धोखाधड़ी के ऐसे ही पीड़ितों में से एक हैं. वो स्कूटी खरीदना चाहती थीं, जो उनकी पहुंच से बाहर थी.

ऐसे में इस साल की शुरुआत में शिवकली को फ़ेसबुक पर स्कूटी बेचने से जुड़ी एक ‘फ़ायदेमंद’ डील नज़र आई.

वो कहती हैं, ”मैंने बिना सोचे-समझे इस मौके का फ़ायदा उठा लिया.”

कुछ क्लिक के बाद वो स्कूटी के मालिक से बात करने लगीं, जिसने कहा कि वो अगर लगभग 1900 रुपये देती हैं तो वो गाड़ी के पेपर्स भेज देगा.

सब कुछ आसानी से हो रहा था, इसलिए शिवकली ने स्कूटी के मालिक को इंस्टैंट ट्रांसफर के ज़रिए पैसे भेज दिए.

इस डील के दौरान शिवकली को धीरे-धीरे कुल मिलाकर लगभग 16 हज़ार रुपये भेजने पड़े, लेकिन वो स्कूटी कभी डिलीवर नहीं हुई.

अंत में शिवकली को अहसास हुआ कि उनके साथ फ्रॉड हुआ है.

वो कहती हैं, ”मुझे नहीं लगता था कि मेरे साथ धोखा हो सकता है, क्योंकि मैं पढ़ी लिखी हूं और मैं जानती हूं कि दुनिया में क्या हो रहा है. लेकिन ऐसे धोखेबाज़ बहुत चालाक होते हैं. उनके पास सामने वाले को अपनी बातों में फंसाने की कला होती है.”

भारत सरकार और केंद्रीय बैंक, यूपीआई यूज़र्स को घोटालेबाज़ों से बचाने के तरीकों पर काम कर रहे हैं.

लेकिन अभी अगर किसी पीड़ित को मुआवज़ा लेना हो, तो उसे बैंक से संपर्क ही करना होता है

किसकी ज़िम्मेदारी?

वित्तीय अपराध से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ डॉ. दुर्गेश पांडेय कहते हैं, ”समस्या की जड़ें बहुत गहरी हैं. इसमें सबसे अधिक ज़िम्मेदारी बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों की है. वो जांच करने में कोताही बरतते हैं इसलिए धोखेबाज़ों का पता नहीं लग पाता है.”

”लेकिन बैंकों के लिए चुनौती ये है कि उन्हें समावेशी, कारोबार में आसानी और जांच करने की प्रक्रिया में सामंजस्य बिठाना पड़ेगा. अगर बैंक बहुत सख़्त हो जाएंगे तो समाज का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो बैंकिंग सुविधाओं से वंचित रह जाएगा.”

डॉ. पांडेय तर्क देते हैं कि धोखाधड़ी के ज़्यादातर मामलों में बैंक पूरी तरह से दोषी नहीं होते हैं.

वो कहते हैं, ”ये एक कठिन सवाल है क्योंकि समस्या बैंकों से तो जुड़ी है, लेकिन धोखेबाज़ों को निजी जानकारी तो लोग ही देते हैं. ऐसे में मेरा मानना है कि पीड़ित और बैंक दोनों को ही नुकसान उठाना चाहिए.”

इन दिक्कतों के बावजूद यूपीआई को ग्रामीण इलाकों में बढ़ावा दिया जा रहा है, जहां बैंकिंग सेवाएं सबके लिए आसानी से उपलब्ध नहीं हैं.