चंद्र प्रदोष 2018 व्रत कथा: मनोकामना पूर्ण करने के लिए किया जाता है ये व्रत, जानें क्या है कथा

हिंदू धर्म के अनुसार प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने वाली स्त्रियों की हर मनोकामना व्रत के फल से पूरी होती हैं। इस व्रत को पूरा करने का शुभ समय प्रदोष काल में होता है। हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को भगवान शिव को प्रसन्न करने वाला प्रदोष व्रत किया जाता है। माघ माह को हिंदू पंचांग के अनुसार शुभ माना जाता है, इस माह चंद्र प्रदोष होने के कारण इस व्रत का विशेष महत्व माना जा रहा है। इस दिन व्रत के बाद प्रदोष काल में इस व्रत की कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है।

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्रह्मणी हर दिन अपने पुत्र को लेकर भिक्षा मांगने जाती थी और शाम को लौटती थी। एक दिन घर आते समय उसे नदी किनारे एक बालक मिला तो एक देश का राजकुमार था। एक युद्ध में शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था और माता की आकाल मृत्यु हो गई थी। ब्रह्मणी उसे अपने साथ ले आई और उसका लालन-पालन अपने पुत्र की तरह करने लगी। कुछ समय बाद ब्राह्मणी ऋषि शाण्डिल्य से मिलने देव मंदिर गई वहां उन्होनें उस बालक राजकुमार के बारे में बताया। ऋषि ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ब्राह्मणी और बालक प्रदोष व्रत करते हैं।

एक समय ब्राह्मणी के दोनों बालक वन में घूम रहे होते हैं, वहां पर उन्हें दो गंधर्व कन्याएं मिलती हैं। ब्रह्माणी का बालक वापस लौट आता है लेकिन राजकुमार उनसे बात करने के वहीं रुक जाता है। दोनों एकदूसरे पर मोहित हो जाते हैं। कन्या महल जाकर अपने पिता को उस राजकुमार के बारे में बताती है। गंधर्वराज को राजकुमार से अपनी कन्या का विवाह करवा देते हैं। गंधर्व सेना की सहायता से राजकुमार अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लेता है। इस व्रत के फल से ही ब्राह्मणी और राजकुमार को राज्य मिल जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार माना जाता है कि जो प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करता है और ध्यान पूर्वक कथा का पाठ करता एवं सुनता है उसके जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती है।

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