चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के पक्ष में नहीं हैं कांग्रेस के चार बड़े कानूनविद
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ संसद के बजट सत्र में महाभियोग लाया जाय या नहीं इस पर कांग्रेस में अभी संशय की स्थिति है। पार्टी के कई बड़े और कानून के जानकार नेताओं ने महाभियोग प्रक्रिया को न केवल अंतिम अस्त्र कहा बल्कि मौजूदा परिस्थितियों में इसे लाने या उसका समर्थन करने पर भी असहमति जताई है। बता दें कि अभी हाल ही में सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा था कि वो बजट सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने के विकल्पों पर विपक्ष के साथ बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों की जांच का यही उचित तरीका हो सकता है लेकिन इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने महाभियोग लाने के विचार को खारिज कर दिया है। इनमें वैसे नेता शामिल हैं जो 12 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा इस मुद्दे पर बुलाई गई बैठक में शामिल थे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और यूपीए सरकार में केंद्रीय कानून मंत्री रहे एम वीरप्पा मोईली ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “जब तक कि आपके पास कोई ठोस आधार ना हो, आप महाभियोग प्रस्ताव नहीं ला सकते हैं। जब तक कि आपके पास उपयुक्त आधार, ठोस सबूत और तय शर्तों के मुताबिक तथ्य ना हो आप महाभियोग के लिए आगे नहीं बढ़ सकते हैं। फिलहाल, उचित आधार नहीं है। मुझे नहीं लगता कि अभी जो तथ्य मौजूद हैं उसके आधार पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है। यह आपके उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाएगा।” मोईली ने कहा, “यह एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है। देश के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना राजनीतिक मुद्दा होना भी नहीं चाहिए। इसे न्यायिक मुद्दा ही समझा जाना चाहिए।”
एक और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और कांग्रेस नेता अश्विनी कुमार ने भी मोईली की राय से सहमति जताई और कहा कि वह इस मामले से जुड़े हैं और उन प्रस्तावों पर विचार कर रहे हैं जिनमें इस तरह के प्रस्ताव लाने की चर्चा की गई है। उन्होंने कहा, राजनीतिक दलों द्वारा जल्दबाजी में या दुर्भावनावश उठाया गया कोई भी कदम न्यायपालिका की आजादी स्थापित करने के अंतिम उद्देश्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। इस संबंध में कोई भी कदम सरकार की विधायी और कार्यपालिका में निहित शक्तियों को न्यायपालिका के खिलाफ खड़ा करेगा। इससे ना सिर्फ संवैधानिक लोकतंत्र बदनाम होगा बल्कि दो संस्थाओं के बीच बेवजह का टकराव भी पैदा होगा।