चुनौतियों की चिंता में फंसी ट्रैफिक पुलिस
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के सर्वे-सर्वा बनना कांटो भरा ताज के समान है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लाल बत्ती पार करने की सजा तीन महीने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस जब्त करने से लेकर, सीसीटीवी लगाकर ट्रैफिक नियमों की अवहेलना करने वालों की धड़पकड़ जैसे कई बिंदुओं पर ट्रैफिक पुलिस उहापोह में फंसी हुई है। 24 घंटे की ड्यूटी के दौरान ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के लिए पुलिस पोस्ट बनाने से लेकर शौचालय तक का अभाव मंगलवार को बने ट्रैफिक के नए आलाकमान के लिए चुनौती की तरह साबित होने वाला है। बढ़ती हुई सड़क दुर्घटनाएं और ट्रैफिक पुलिस पर लगने वाले भ्रष्टाचार के दाग भी चुनौतियां बढ़ाने के लिए काफी हैं।
ट्रैफिक पुलिस के लिए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को अमल में लाने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है जिसमें ट्रैफिक नियमों की अवहेलना और उसे तोड़ने की सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। पूर्वी दिल्ली के कल्याणपुरी ट्रैफिक सर्किल में बीते नौ महीने से चक्कर काट रहे एक सज्जन की आपबीती ट्रैफिक पुलिस की कार्यशैली की पोल खोलने के लिए काफी है। धर्मशिला अस्पताल के पास नियम तोड़ने के आरोप में ड्राइविंग लाइसेंस जब्त करने के बाद उसे लोनी स्थित ट्रांसपोर्ट आथोरिटी में जमा कराने और फिर तीन महीने के बाद इस जद्दोजहद में कि यहां जमा हुआ या नहीं मामला संयुक्त आयुक्त की नजर तक गया। लेकिन अंत में पता चला कि तीन महीने बीतने के बाद यह ड्राइविंग लाइसेंस लोनी आथोरिटी में जमा हुआ और तब तक उस लाइसेंस की वैधता की अवधि समाप्त हो गई और यह मामला इतनी पेंचीदगी में फंस गया कि कोई कुछ बोलने तक तो तैयार नहीं हुए। इस प्रकार के कई और मामले सामने चल रहे हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा के साल 1990 बैच के अधिकारी दीपेंद्र पाठक को मंगलवार को ट्रैफिक पुलिस का स्पेशल आयुक्त बनाकर केंद्र सरकार ने दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने का एक चुनौतीपूर्ण काम सौंप दिया है। स्पेशल आयुक्त अजय कश्यप का तिहाड़ जेल के महानिदेशक बनाए जाने के बाद यह चर्चा थी कि अब ट्रैफिक का यह कांटो भरा ताज किसे मिलेगा? पाठक इससे पहले भी कई बड़े पदों पर अपनी सेवा दे चुके हैं। लेकिन इस बार उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती खड़ी की गई है।
वीवीआइपी रूट और धरना प्रदर्शन जब एक साथ सामने आता है तो ट्रैफिक के कांस्टेबल से लेकर आला अधिकारी तक के पसीने छूट जाते हैं। ग्रीन कोरीडोर बनाने और मुसीबत में फंसे लोगों के हृदय सहित अन्य अंगों को संबंधित अस्पतालों तक पहुंचाने की एक और चुनौती खड़ी हो गई है। मेट्रो सहित अन्य सरकारी, अर्द्धसरकारी और निजी निर्माण के बाद सड़क पर गड्ढ़े खोदने, पानी जमा होने और अतिक्रमण कर सामान डालने को हटवाने के लिए तेज तर्रार ट्रैफिक पुलिस अधिकारियों की जरूरत महसूस होती रही है। छुट्टी के बाद सरकारी और पब्लिक स्कूलों की बसों को उसके गंतव्य तक पहुंचाने का जिम्मा भी एक प्रकार से ट्रैफिक पुलिस के सिर ही थोपा जाता है। छह अक्तूबर से अंडर 17 विश्वकप फुटबॉल मैच जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में होने हैं। पूरे विश्व के फुटबॉल सहित अन्य खिलाड़ी दिल्ली आएंगे और साथ में मैच को देखने वाले दर्शकों की संख्या हजारों में होगी। उन्हें ट्रैफिक की समस्या से दो चार न होना पड़े यह चुनौती भी पाठक के सामने है। इसी महीने की शुरूआत में उपराज्यपाल के निर्देश के बाद दिल्ली के तीनों नगर निगमों के साथ मिलकर अतिक्रमण, सड़क पर गाड़ी खड़ी करना और अवैध पार्किंग को लेकर एक अभियान चलाया गया। अभियान की सफलता अभी देखी जानी है लिहाजा उसे भी अमलीजामा तक पहुंचाना ट्रैफिक पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। ट्रैफिक पुलिस पर कई बार यह आरोप भी लगता रहा है कि वे अपने सुविधा शुल्क के लिए बिना कारण सड़क दुर्घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।