जब नहीं छप पाई थी वाजपेयी की कविता, पत्र लिखकर मनोहर श्याम जोशी को दिया था उलाहना
कविताएं और गीत साहित्य प्रेमी वाजपेयी के भावनाओं का उदगार थीं। कविताओं में उनका दर्शन झलकता था। जिंदगी के फलसफे को वो आसान शब्दों में पन्नों पर उतार देते थे और लोगों तक अपनी बात कह जाते थे। 1977 में वाजपेयी जब देश के विदेश मंत्री थे तो उन्होंने अपनी एक कविता ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में छपने के लिए भेजी थी। उस वक्त मूर्धन्य साहित्यकार और पत्रकार मनोहर श्याम जोशी ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ के संपादक थे। जब वाजपेयी जी की कविता नहीं छपी तो उन्होंने संपादक मनोहर श्याम जोशी को एक चिट्ठी लिखी। यूं तो ये चिट्ठी उलाहना देने के लिए लिखी गई है, लेकिन इसकी भाषा इतनी रोचक और प्रभावी है कि संपादक महोदय बिना प्रभावित हुए नहीं रह सके।
मनोहर श्याम जोशी भी प्रखर पत्रकार थे। उन्होंने भी वाजपेयी जी के इस पत्र का ‘करारा’ जवाब दिया। पहले हम आपको वाजपेयी जी के पत्र के बारे में बताते हैं। वाजपेयी जी ने 25 अगस्त 1977 को विदेश मंत्रालय के लेटरपैड पर पत्र लिखा, ” प्रिय सम्पादक जी, जयरामजी की। अत्र कुशलम् तत्राशस्तु। अपरंच समाचार यह है कि कुछ दिन पहले मैंने एक अदद गीत आपकी सेवा में रवाना किया था। पता नहीं आपको मिला या नहीं। पहुंच की रसीद अभी तक नहीं मिली। नीका लगे तो छाप लें, वरना रद्दी की टोकरी में फेंक दें। इस संबंध में एक कुण्डली लिखी है।” इसके बाद वाजपेयी जी ने 12 पंक्तियों की एक कविता लिखी है। इस कविता में वाजपेयी जी कहते हैं कविता लिखना तो कठिन है ही उससे भी कठिन है उसे छपवाना।
इसके बाद मनोहर श्याम जोशी ने अटल जी के पत्र का जवाब दिया। उन्होंने लिखा, “आदरणीय अटल जी महाराज, आपकी शिकायती चिट्ठी मिली, इससे पहले कोई एक सज्जन टाइप की हुई एक कविता दस्ती दे गये थे कि अटल जी की है। न कोई खत, न कहीं दस्तखत। आपके घर फोन किया तो किन्हीं, ‘पी,ए’ महोदय ने कह दिया कि हमने कोई कविता नहीं भिजवाई। आपके पत्र से स्थिति स्पष्ट हुई और सम्बद्ध कविता पृष्ठ 15 पर प्रकाशित भई। आपने एक कुण्डली कही तो हमारा कवित्व भी जागा।” इसके बाद मनोहर श्याम जोशी ने पूरी स्थिति स्पष्ट करते हुए अटल जी को कविता की पंक्तियों के जरिये अपनी बात कही।