जब बलराज साहनी ने की जेएनयू के पहले दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता, कहा- ‘जेएनयू में तो फर्श धो कर भी खुश होता’
‘जिस व्यक्ति के नाम पर आपकी यूनिवर्सिटी बनी है, उसके व्यक्तित्व से मुझे प्यार है। उतना ही प्यार और आदर, बल्कि उससे भी ज्यादा…। इसलिए आपकी संस्था की ओर से मिले किसी भी निमंत्रण को अस्वीकार नहीं कर सकता। अगर आप मुझे फर्श साफ करने के लिए भी बुलाते तब भी मैं उतना ही खुश और सम्मानित महसूस करता, जितना इस समय यहां खड़े होकर आपको संबोधित करने में महसूस कर रहा हूं। पर उस सेवा के लिए मैं शायद अधिक योग्य साबित होता’। मकबूल अदाकार बलराज साहनी ने ये बातें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पहले दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए कही थीं। अपनी स्थापना के साथ ही जेएनयू देश की नाक बन गया था। इसकी पहचान ही ज्ञान और अनुसंधान की थी। लेकिन जेएनूय का पहला दीक्षांत समारोह और बलराज साहनी का भाषण इतिहास का पन्ना बन गया। उसके 45 साल बाद जेएनयू ने फिर से दीक्षांत समारोह करने का फैसला किया है। बलराज साहनी के बाद नए आगाज में दीक्षांत समारोह का अतिथि कौन होगा फिलहाल इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन चुप्पी साधे हुए है।
देश और दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का 45 साल बाद होने वाला दूसरा दीक्षांत समारोह चर्चा में तो रहेगा ही। फरवरी के अंतिम या मार्च के पहले हफ्ते में आयोजित होने वाले दीक्षांत समारोह में पीएचडी करने वाले विद्यार्थियों को उपाधि दी जाएगी। विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह 1972 में आयोजित हुआ था, जिसमें फिल्म अभिनेता बलराज साहनी मुख्य अतिथि थे। हालांकि, अभी तक समारोह के मुख्य अतिथि का नाम तय नहीं हुआ है। गौरतलब है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम इस विश्वविद्यालय की शुरुआत 28 अप्रैल 1969 को हुई थी और पहले कुलपति जी पार्थसारथी थे।
जेएनयू के विद्यार्थी और बाद में शिक्षक रहे प्रोफेसर आनंद कुमार ने पहले दीक्षांत समारोह को याद करते हुए बताया कि छात्र संघ की मांग का सम्मान करते हुए विश्वविद्यालय ने ऐसे व्यक्ति (बलराज साहनी) को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया जो एक शिक्षक और विचारक दोनों थे। साथ ही उनका किसी राजनीतिक संगठन से भी कोई संबंध नहीं था। प्रोफेसर कुमार ने बताया कि विद्यार्थियों की ओर से कहा गया था कि उनके प्रतिनिधि को भी समारोह में बोलने का मौका दिया जाए, जिस पर विश्वविद्यालय प्रशासन राजी हो गया था। तत्कालीन छात्र संघ अध्यक्ष ने स्वागत भाषण के बाद अपना भाषण दिया लेकिन यह वह भाषण नहीं था जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन को दिखाया गया था। इसमें काफी बदलाव कर दिए गए थे और इसे उग्र भी बना दिया गया था। इसके बाद शिक्षकों और विश्वविद्यालय प्रशासन के अधिकारियों में चर्चा हुई और दीक्षांत समारोह का आयोजन बंद कर दिया गया।