जब मालदीव में घुसी थी भारतीय फौज, राष्ट्रपति को लिट्टे आतंकियों से बचाया, पढ़ें ऑपरेशन कैक्टस की कहानी

मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने सोमवार को देश में आपातकाल घोषित कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद के साथ कोर्ट के अन्य जज अली हमीद को गिरफ्तार कर लिया गया। सेना और पुलिस ने देश की संसद को सील कर दिया है। पूर्व लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित मालदीव के राष्ट्रपति मोहमद नाशीद ने भारत से अपनी आर्मी को देश में भेजकर उनकी मदद करने को कहा है। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कई सदस्यों ने भारत से इस मामले में दखल देने को कहा है। उनका कहना है कि जिस तरह साल 1988 में भारतीय सेना ने ऑपरेशन कैक्टस चलाकर महत्वपूर्ण कदम उठाया था, उसी तरह भारत को फिर से मालदीव का रक्षक बनने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए।

फिलहाल इस मामले में भारतीय सेना को स्टैंड बाय पर रखा गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि सरकार मालदीव की स्थिति पर नजर बनाए हुए है। मालदीव पर आया यह राजनीतिक संकट चिंताजनक है। आपको बता दें कि ऑपरेशन कैक्टस के दौरान भारतीय सेना ने मालदीव की सीमा पार कर लिट्टे के आतंकियों से राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम को बचाया था।

1988 में पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम के करीब 200 श्रीलंकाई आतंकवादियों ने मालदीव पर हमला कर दिया था। देश की राजधानी माले पर कब्जा करने के बाद आतंकवादी शहर के कोने-कोने में फैल गए और सभी इलाकों को अपने कब्जे में कर लिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसके बाद आतंकी राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम को अपना शिकार बनाना चाह रहे थे लेकिन वे किसी तरह बचकर निकले और उन्होंने मालदीव के नेशनल सिक्यूरिटी सर्विस हेडक्वाटर में पनाह ली। इस संकट के बाद राष्ट्रपति ने कई देशों से संपर्क किया, जिनमें भारत समेत पाकिस्तान, यूएस, ब्रिटेन, श्रीलंका जैसे देश शामिल थे।

श्रीलंका ने अपनी सेना को स्टैंड बाय पर रखा तो वहीं यूएस और ब्रिटेन ने सीधेतौर पर इस मामले में हस्तक्षेप न करने का फैसला किया लेकिन मालदीव को भारत से अच्छा रिस्पोंस मिला। तत्तकालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बिना किसी देरी के भारतीय सेना को मालदीव में जाकर सैन्य कार्रवाई करने के लिए कहा। 3 नवंबर, 1988 की रात भारतीय सेना ने उस समय अपनी कार्रवाई शुरू की जब इंडियन एयरफोर्स के पैराशूट ब्रिगेड के करीब 300 जवान माले के रवाना हुए। भारतीय सेना के विमान एक के बाद एक हुलहुले एयरपोर्ट पहुंचे। इसके बाद भारतीय सेना लगूनों पार करते हुए माले में दाखिल हुई। यह भारतीय सेना का पहला विदेशी मिशन था।

इसके बाद कोच्चि से माले और भारतीय सेना भेजी गई। लिट्टे के आतंकी यह नहीं जानते थे कि माले पर कब्जा करने के कुछ ही घंटों बाद उन्हें सैन्य कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय सेना ने अपनी कार्रवाई जारी रखते हुए सबसे पहले माले एयरपोर्ट को अपने कब्जे में किया और फिर उन्होंने नेशनल सिक्यूरिटी सर्विस हेडक्वाटर से राष्ट्रपति गय्यूम को सुरक्षा प्रदान की। इसके बाद आतंकियों को मिलने वाले सामान की सप्लाई लाइन को काट दिया गया। कुछ ही घंटों के अंदर भारतीय सेना ने राष्ट्रपति गय्यूम की राजधानी को लिट्टे के आतंकियों से बचा लिया था। इस हमले में सबसे बड़ी बात यह थी कि आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान भारतीय सेना को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था। भारतीय सेना की इस कार्रवाई के बाद कई देशों ने भारत की तारीफ भी की थी।

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