जब वाजेपयी ने बताया था कि जलाए गए हिंदुओं की तस्वीरें देख बदल गया था गुजरात दंगों पर नजरिया
गुजरात दंगे को लेकर राजनीतिक गलियारों से लेकर मीडिया में कई बार बहस हुई। टीवी चैनलों पर पैनल डिस्कशन हुए। इस दंगे को लेकर देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपनी राय दी थी, और इसे गलत करार दिया था। तब वाजपेयी देश के पीएम थे। एनडीटीवी के साथ एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से कई मुद्दों पर बात की गई थी। इसी इंटरव्यू में गुजरात दंगों पर भी सवाल किए गए थे। इंटरव्यू के दौरान एंकर ने पूछा कि, “कहते हैं वाजपेयी जी ने नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने को कहा, इसके बावजूद बेस्ट बेकरी जैसा जजमेंट आता है। लोगों को इंसाफ नहीं मिला। क्या मान लें कि यह आपकी कमजोरी थी?” इस पर अटल जी कहते हैं, “आपने ये सवाल पूछा बहुत अच्छा किया। जब मैंने पहली दफा गुजरात हत्याकांड देखा, मैंने इसकी निंदा की थी। मैं कैंप में गया था। मेरा भाषण मौजूद है। तब तक मैंने जो हिंदू जिंदा जलाए गए थे, उनकी तस्वीर नहीं देखी थी। इसलिए जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ। लेकिन मैं मानता हूं कि अगर हिंदू जलाए नहीं जाते, तो बाद में जो हत्याकांड हुआ, वह नहीं होता।”
इसके बाद एंकर ने पूछा कि इंसाफ का जो सवाल आता है, आम आदमी को अभी तक इंसाफ नहीं मिला है? इस पर अटल जी कहते हैं, “मैं मानता हूं। सर्वोच्च न्यायालय कदम उठा रहा है। उम्मीद करना चाहिए कि सही साबित होंगे।” एंकर ने आगे सवाल किया कि वाजपेयी जी की इस बात पर आलोचना होती है कि एक चीज वे अहमदाबाद में कहेंगे, दूसरी चीज दूसरे जगह। इस पर अटल जी कहते हैं, “ऐसा नहीं है। गुजरात में जब मैंने हत्याकांड देखा, मुझे नहीं पता था कि इस तरह से हिंदू जिंदा जलाए गए हैं। जब मैं गोवा पहुंचा तो पहली दफा वो बात मेरे सामने लायी गई। पहले मैं नहीं समझता था कि दंगा हुआ है। हिंदू-मुस्लिम मरे हैं। लेकिन जब वो तस्वीर मैंने देखी, तो मुझे लगा कि ये तो बहुत ज्यादा अन्याय हुआ है। लेकिन फिर भी उसका जवाब ये नहीं था कि मुसलमानों को मारा जाता।”
एंकर ने पूछा कि यह बार-बार कहा जाता कि जब कोई कड़ा फैसला लेना होता है तो वाजपेयी जी बीच का रास्ता चुनते हैं। जैसे की अयोध्या मामला। एक तरफ विश्व हिंदू परिषद आप पर दबाव डालती है दूसरी तरफ आप गठबंधन के प्रधानमंत्री हैं। ऐसी स्थिति में क्या होता है? इस पर वाजपेयी जी ने कहा, “उसमें समझौता करना पड़ता है। कीमत चुकानी पड़ती है। लेकिन लोगों को साथ लेकर चलना भी जरूरी है, वरना आप इतने विशाल और विविधता से पूर्ण देश में कुछ कर नहीं सकते हैं। मंदिर का मसला सुलझाना मेरा विषय नहीं था। समझौता का रास्ता निकाला जा सकता था। अयोध्या का मसला साधु-संगठनों और संतों के सहयोग से सुलझ सकता है।”