जया एकादशी 2018 व्रत कथा: इस दिन व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति, जानें क्या है कथा
भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युद्धिष्ठिर को माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व बताते हुए कथा सुनाई कि इस दिन को जया एकादशी का नाम दिया गया है। इसका व्रत करने से मनुष्य पापों से मोक्ष पाता है। इसी के साथ भूत पिशाच आदि योनियों से मुक्त हो जाता है। पद्मपुराण के अनुसार जया एकादशी की कथा में देवराज इंद्र स्वर्ग के राजा होते हैं और एक समय इंद्र अपनी इच्छा के अनुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ थे। गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत और उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन और उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित रहते हैं।
पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर मुग्ध हो जाती है और माल्यवान पर काम-बाण का प्रयोग करती है। माल्यवान उसके काम-बाण में फंस जाता है और उसका ध्यान भंग हो जाता है। पुष्पवती और माल्यवान का ये व्यवहार देखकर इंद्र समझ जाते हैं कि ये दोनों प्रेम में हैं। इंद्र दोनों को श्राप देते हैं कि तुम दोनों मृत्यु लोक जाकर पिशाच रुप धारण करो और अपने कर्म का फल भोग करोगे। इंद्र के श्राप के कारण वो दोनों पिशाच के रुप में हिमालय पर्वत पर अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें अपने पूर्वजन्म के बारे में कुछ याद नहीं था। कई बार पिशाच योनि से परेशान होकर दोनों पश्चताप करते थे कि उन्हें किन पापों का फल मिल रहा है।
ठंड के समय दोनों पिशाच व्याकुल थे कि वो कैसे इस योनि से मुक्ति पाएं, तभी दैव्ययोग से माघ माह के शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन्होनें भोजन नहीं किया और किसी भी पाप कर्म से दूर रहे। शाम के समय पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ही दोनों ने रात गुजार दी। इसी तरह उनका एकादशी का व्रत पूरा हो गया। व्रत पूरा होने के बाद दोनों को पिशाच योनि से छुटकारा मिल गया और वो स्वर्ग लोक की तरफ चल दिए। स्वर्ग लोक पहुंचकर इंद्र देव को उन्होनें बताया कि किस तरह से भगवान विष्णु और जया एकादशी के कारण उन्हें अपने पापों से मुक्ति मिली है।