जल्दबाजी में भ्रामक प्रस्ताव लेकर आया डीडीए
दिल्ली नगर निगम सचेत होता और एक दशक पहले हुए सीलिंग से सबक लेती तो आज दिल्ली का यह हाल नहीं होता। जब भूतल और पहली मंजिल के अलावा उपरी तल पर व्यापार शुरू हुआ तब निगम आंखें मूंदकर काम होने दिया गया। यही कारण है कि अब दिल्ली को सीलिंग से बचाने के लिए डीडीए के लाए गए प्रस्ताव को भी व्यापारी संगठन बेहद भ्रामक बता रहे हैं। संगठन का मानना है कि प्रत्येक प्रस्ताव के साथ कुछ ऐसी शर्तें लगाई गई हैं जिनका पालन बेहद मुश्किल है। इस लिहाज से जिस उद्देश्य से प्रस्ताव लाए गए वो पूरा होता नहीं दिखाई देता। निगम सूत्रों का कहना है कि बिना निगम अधिकारियों की मिलीभगत से स्थानीय स्तर पर शापिंग काम्पलेक्स नहीं बनाया जा सकता है।
निर्माणाधीन अवैध निर्माण और बाद में उसमें चल रहे व्यापारिक क्रिया कलापों को निगम अधिकारियों ने चुप्पी साधकर होने दिया। एक के बाद एक व्यापारिक प्रतिष्ठान शुरू हो गए और निगम को इसकी भनक तक नहीं लगी, यह दिल्ली में कैसे संभव हो सकता है। अब जब सुप्रीम कोर्ट का डंडा चलना शुरू हुआ तो निगम मौन है। बेसमेंट की सीलिंग में भी यही हाल है। वहां दिल्ली दमकल से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना टेढ़ी खीर के समान है और ऐसे में वहां भी गतिविधियां होती रहीं और निगम अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। दो दिनों तक सीलिंग के खिलाफ 48 घंटे के दिल्ली व्यापार बंद के बाद रविवार को बाजार तो खुले पर व्यापारी संगठन अपने अभियान से पीछे नहीं हटने वाले। कनफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) का कहना है कि दिल्ली को सीलिंग से बचाने के लिए डीडीए के लाए गए प्रस्ताव बेहद भ्रामक हैं क्योंकि प्रत्येक प्रस्ताव के साथ कुछ ऐसी शर्तें लगाई गई हैं जिनका पालन बेहद मुश्किल है।
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि डीडीए के प्रस्ताव बेहद जल्दबाजी में तैयार किए गए हैं बिना इस बात को ध्यान में रखे हुए कि उन प्रस्तावों का पालन कैसे होगा और उनका प्रभाव क्या पड़ेगा। इसलिए ये प्रस्ताव अभी चर्चा में होने से पहले ही विवादास्पद हो गए हैं’। उन्होंने सुझाव दिया कि बिना कोई जल्दबाजी किए सरकार को व्यापक अध्ययन के बाद संसद में एक बिल लाकर सीलिंग को छह महीने के लिए स्थगित करना चाहिए और इसी अवधि में सरकार को प्रस्ताव तैयार करने चाहिए। इसके लिए जैसा कैट ने पहले सुझाया था कि दिल्ली के उपराजयपाल की अध्यक्षता में एक स्पेशल टास्क फोर्स गठित करनी चाहिए जो इस काम को समयावधि में पूरा करे। खंडेलवाल ने यह भी कहा की डीडीए के प्रस्तावों में समान एफएआर का प्रस्ताव दिया गया है जो व्यावहारिक नहीं दिखाई देता क्योंकि दिल्ली में तरह-तरह के क्षेत्र हैं जिनमें कई तरह के बुनियादी अंतर है।
खास तौर पर कमर्शियल, मिक्सड लैंड यूज, पैदल पथ, विशेष क्षेत्र, गांव की आबादी में प्रत्येक क्षेत्र के लिए अलग तरह के एफएआर की जरूरत है। इससे सभी लोगों को राहत मिल सकेगी। दूसरी ओर, जिन क्षेत्रों को नगर निगम या डीडीए ने कमर्शियल घोषित किया है या कमर्शियल बेचा अथवा दिया है उनसे किसी भी तरह का कन्वर्जन शुल्क लेना बेमानी है। व्यापारियों ने सुझाव दिया है कि सीलिंग को छह महीने के लिए स्थगित करते हुए सरकार को महाधिवक्ता को सलाह देनी चाहिए कि वो सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर कोर्ट को सरकार के कदम और मंशा के बारे में बताएं और यह भी बताएं कि सरकार छह महीनों में प्रस्ताव तैयार कर लागू करेगी। इससे व्यापारियों को राहत मिलेगी।