जल में रह कर भी मछली नहीं खाता यह मगरमच्‍छ, मंदिर का प्रसाद खाकर रहता है जिंदा!

केरल के कसारागोड में आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर के तालाब में रहने वाला मगरमच्छ अपनी प्रकृति खिलाफ पूर्ण रूप से सात्विक और शाकाहारी होने के लिए सुर्खियों में बना हुआ है। इस मगरमच्छ का नाम बबिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मंदिर दावा करता है कि  मगरमच्छ बबिया को नॉनवेज का शौक नहीं है और वह मंदिर में मिलने वाला प्रसाद ही खाता है। मगरमच्छ को दिन में दो बार गुड़ और चावल का प्रसाद दिया जाता है। मजे की बात यह है कि जिस तालाब में बबिया रहता है, उसकी मछलियों को भी उससे टेंशन नहीं है, बबिया के शाकाहारी होने की वजह से वे महफूज रहती हैं। हिस्ट्री टीवी के मुताबिक मंदिर के आस-पास दूर-दूर तक न तो कोई नदी है और न ही झील है, लेकिन मंदर के तालाब में करीब डेढ़ सौ वर्षों से एक मगरमच्छ दिखाई देता आ रहा है। बबिया के यहां 70 से ज्यादा वर्षों से होने की बात कही जाती है।

कहा जाता है कि मंदिर के तालाब में हमेशा एक ही मगरमच्छ रहता है, लेकिन वह आता कहां से है, किसी को नहीं पता। यह भी कहा जाता है कि अगर एक मगरमच्छ मरता है तो उसकी जगह दूसरा आ जाता है। न्यूज मिनट के अनुसार मंदिर के एक कर्मचारी चंद्रशेखरन बताते हैं कि यह भगवान का मगरमच्छ हैं, इसलिए इसके पास जाने पर यह नुकसान नहीं पहुंचाता है। यह मंदिर कसारागोड जिले के अनंतपुर नाम के छोटे से गांव में बना है। इस मंदिर को तिरुवनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी के मंदिर के मूलस्थान के तौर पर जाना जाता है।

मंदिर के लोगों का मत है कि बबिया भगवान मद्मनाभ का दूत है। बबिया के शाकाहारी होने से उसकी ख्याति ऐसी हो गई है कि जिसे उसके बारे में पता चलता है तो वह एक बार उसे देखने मंदिर में जरूर आता है। दूर-दूर से आने वाले सैलानी भी टकटकी लगाए उसका इंतजार करते हैं। बबिया के तालाब में रहते मंदिर के पुजारी उसमें बेखौफ होकर डुबकी लगा लेते हैं। तालाब में ही एक तरफ एक गुफा बनी है। कहा जाता है कि बबिया दिन में उसी तालाब में रहता है और खाने के वक्त उससे बाहर निकलता है। बबिया की खाने की आदत पर विशेषज्ञ भी हैरानी जताते हैं।

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