जवान की बिटिया को बचाने के लिए तोड़ा रोजा, बोला- जान की हिफाजत ज्यादा जरूरी

बिहार के दरभंगा में एक मुस्लिम युवक ने सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश की है। दो दिन की बच्ची की जान बचाने के लिए युवक ने अपना रोजा तोड़ कर रक्तदान किया, ताकि नवजात की सांसें चलती रहे। समाचार एजेंसी ‘एएनआई’ के अनुसार, एसएसबी जवान रमेश सिंह को दो दिन पहले बेटी हुई थी, जिसकी स्थिति बेहद खराब थी। बेहतर इलाज के लिए उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने बच्ची को खून चढ़ाने की जरूरत बताई थी। इस पर मोहम्मद अशफाक रक्तदान के लिए तैयार हो गया। बिना कुछ खाए रक्तदान नहीं किया जा सकता। इसे देखते हुए डॉक्टरों ने खून देने से पहले अशफाक को कुछ खाने को कहा। बता दें कि मुस्लिम समुदाय के लिए आजकल रमजान का पवित्र महीना चल रहा है, जिसमें समुदाय के लोग रोजा रखते हैं। अशफाक भी रोजा पर थे, लेकिन जवान की नवजात बिटिया की जान को खतरे में देख कर उन्होंने अपना रोजा तोड़कर रक्तदान किया। उन्होंने कहा, ‘मेरी समझ में किसी की जान बचाना ज्यादा कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। सुरक्षाबल की बेटी होने की बात ने मुझे इसके लिए प्रेरित किया।’
Darbhanga: Mohammad Ashfaq broke his ‘roza’ (fast observed during Ramzan) to donate blood for a 2-day old child of SSB jawan Ramesh Singh, says, ‘I thought saving a life is more important, knowing that she is daughter of a security personnel motivated me more.’ #Bihar (27.05.18) pic.twitter.com/c1YogDnCGG
— ANI (@ANI) May 28, 2018
सांप्रदायिक कटुता के बीच सद्भाव को कायम रखने की एक और मिसाल सामने आई हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अजय लिवर के संक्रमण को लेकर देहरादून के मैक्स अस्पताल में भर्ती थे। उनके प्लेटलेट्स में लगातार गिरावट आ रही थी। ऐसे में A+ बल्ड ग्रुप के खून की जरूरत थी। इसके बाद अजय के पिता ने बेटे की जान बचाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया था। आरिफ नामक युवक को इसका पता चला तो वह तुरंत रक्तदान के लिए तैयार हो गए और अजय के पिता को फोन किया। आरिफ नेशनल एसोसिएशन फॉर पैरेंट्स एंड स्टूडेंट्स के अध्यक्ष हैं। वह जब मैक्स अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों ने उन्हें खून देने से पहले कुछ खाने को कहा था। आरिफ रोजा पर थे और कुछ भी खाने से उनका रोजा टूट जाता। इसके बावजूद उन्होंने रोजा तोड़ कर अजय को खून देना स्वीकार किया। रमजान का पवित्र महीना एक महीने तक रहता है। इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा पर रहते हैं। समुदाय के लोग दिनभर अन्न तो क्या पानी भी नहीं पीते हैं।