जानिए, कौन हैं त्रिपुरा में सीएम बनने का बड़ा दावेदार, बिप्लब देब या सुनील देवधर?
वामपंथ के ‘लाल किले’ त्रिपुरा में पहली बार भगवा परचम फहराने जा रही बीजेपी इस अप्रत्याशित सफलता से फूले नहीं समा रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव में 60 सदस्यों वाली त्रिपुरा विधानसभा में जिस भारतीय जनता पार्टी के एक भी विधायक नहीं था वहां पर बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। बता दें कि भाजपा को पांच साल पहले विधानसभा चुनाव में मात्र 1.5 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी की इस कामयाबी के लिए पार्टी के कई नेताओं ने सालों तक इस मिशन में अपना तन-मन समर्पित किया है। अब जब राज्य में बीजेपी सरकार बनाने जा रही है तो लोग अखबारों, वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर जिस नाम की सबसे ज्यादा तलाश कर रहे हैं वो नाम है त्रिपुरा के सीएम कैंडिडेट का। राज्य में जड़ें जमाने की कोशिश कर रही बीजेपी ने बिना किसी चेहरे के ही विधानसभा चुनाव लड़ा था। अब बंपर जीत के बाद लोग जानना चाह रहे हैं कि बीजेपी इस राज्य की जिम्मेदारी किस शख्स को देगी। इस रेस में फिलहाल दो नाम आगे उभर कर आ रहे हैं। ये दो नाम हैं बिपल्ब कुमार देब और सुनील देवधर।
बिपल्ब कुमार देब
त्रिपुरा के बनमालीपुर विधानसभा से चुनाव लड़ रहे बिपल्ब कुमार देब सौम्य व्यक्तित्व के मालिक हैं। वह इस वक्त त्रिपुरा बीजेपी के अध्यक्ष भी हैं। शनिवार (3 मार्च) जब बीजेपी नेता राम माधव त्रिपुरा के नतीजों पर प्रतिक्रिया देने आए तो उनके साथ बाईं ओर तिलक लगाकर बैठे शख्स बिपल्ब कुमार देब ही हैं। बिपल्ब बेहद लो प्रोफाइल रहकर अपना काम करते हैं और उसे अंजाम तक पहुंचाने में पूरी शिद्दत के साथ जुड़े रहते हैं। त्रिपुरा में इतने आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद नेशनल मीडिया में शायद ही उनका कोई बयान चर्चा का विषय बना हो। बिपल्ब कुमार देब की सबसे बड़ी पूंजी है उनकी राजनीतिक शुचिता। साथ-सुथरे छवि के देब पर कोई भी आपराधिका मुकदमा नहीं है। चुनावी शपथ पत्र में उन्होंने अपनी आय मात्र 2,99,290 रुपये बताई है। बिपल्ब कुमार देब की पत्नी बैंक में काम करती हैं, चुनाव आयोग के दस्तावेजों में उनकी कुल आय 9,01,910 रुपये बताई गई है। बिपल्ब कुमार देब ने नेतृत्व, राजनीति और समाज की शिक्षा आरएसएस से पाई है। यहां पर आरएसएस के प्रचंड नेता के एन गोविंदाचार्य उनके मेंटर रहे हैं।
48 साल के बिपल्ब कुमार देब जब आज से 15 साल पहले दिल्ली में उच्च शिक्षा के लिए आए थे तो यहां पर वह जिम इंस्ट्रक्टर के तौर पर काम भी कर चुके हैं। 2016 में जब उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाकर त्रिपुरा भेजा गया तो उनका ‘लोकल चेहरा’ होना उनके पक्ष में गया। हिन्दुस्तान टाइम्स ने बीजेपी के एक महासचिव के हवाले से कहा है कि बीजेपी में भी उनकी स्वीकार्यता है और सीएम पद के वे प्रथम दावेदार हैं।
सुनील देवधर
त्रिपुरा में बीजेपी की सफलता के पीछे एक बड़ा नाम बीजेपी के त्रिपुरा प्रभारी सुनील देवधर का भी है। नवंबर 2014 में अमित शाह ने उन्हें त्रिपुरा का प्रभारी बनाकर भेजा था। उन्हें जो लक्ष्य दिया गया था, वो था- त्रिपुरा में बीजेपी को शक्तिशाली बनाना। 25 साल से वामपंथी शासन में बीजेपी को खड़ा करने की चुनौती को सुनील देवधर ने सहज स्वीकार किया और 3 साल से ज्यादा वक्त तक लगातार जुटे रहे। त्रिपुरा में बीजेपी का अपना संगठन नहीं था। बांग्ला भाषा में एक्सपर्ट सुनील देवधर ने यहां पर सबसे पहला जो काम किया वो था त्रिपुरा के आदिवासियों की भाषा कोकबोरोक को सीखना। यह भाषा राज्य के 31 फीसदी आबादी द्वारा बोली जाती है। इसे सीखने के बाद वह आदिवासियों से सीधा संपर्क स्थापित करने में सफल हुए। सुनील देवधर आरएसएस में पहले ही काम कर चुके थे। त्रिपुरा में बनवासी कल्याण केन्द्र के जरिये संघ यहां पर सक्रिय भी था, लेकिन वह नाकाफी था। लगातार संवाद के बाद सुनील देवधर मोदी सरकार की नीतियों को त्रिपुरा के लोगों तक पहुंचाने में सफल रहे और उनका विश्वास जीत सके। बीजेपी की जीत के बाद सीएम पद के दावेदारों में उनका भी नाम है, लेकिन कुछ समय पहले ‘द वायर’ को दिये इंटरव्यू में वह कह चुके हैं कि वह सीएम नहीं बनना चाहते हैं।