जुगाड़ का जलवा

कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है। हमारे देश में अनेक लोगों ने साधनहीनता के चलते या फिर अपने जुनून के बल पर ऐसे अनेक उपकरण तैयार किए हैं, जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है और वे किसी भी नामी कंपनी द्वारा तैयार किए गए उपकरणों की तुलना में सस्ते पड़ते हैं। इन्हें दुनिया भर में जुगाड़ तकनीक के नाम से जाना जाता है। वर्तमान सरकार स्किल इंडिया और स्टार्ट-अप इंडिया जैसी योजनाओं के तहत नवाचारी युवाओं को प्रोत्साहित कर रही है। इन योजनाओं में जुगाड़ तकनीक विकसित करने वालों की क्या जगह है, बता रहे हैं अभिषेक कुमार सिंह।

स्टार्टअप के मौजूदा माहौल और स्किल इंडिया जैसी सरकारी मुहिमों का आगे चल कर क्या अंजाम निकलेगा- यह कोई नहीं जानता, पर इस बात की तसल्ली अपने देश में हर दूसरे शख्स को होती है कि जब भी कहीं कोई समस्या सिर पर आ पड़ेगी, तो किसी न किसी जुगाड़ से उसका हल जरूर निकल आएगा। आम बोलचाल में लोग कहते भी हैं कि भारत तो जुगाड़ का देश है। जहां इंजीनियरिंग खत्म होती है, वहां से जुगाड़ शुरू होता है। यह भी खूब देखने को मिलता है कि तकनीक चाहे जितनी तरक्की कर ले, वह जुगाड़ का मुकाबला फिर भी नहीं कर सकती है। बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिक भी स्वीकार करते हैं कि नवाचार यानी इनोवेशन की प्रेरणा उन लोगों से ही मिली है जो बेहद सीमित संसाधनों में और सिर्फ अपनी जिज्ञासा के बल पर कोई ऐसा जुगाड़ बना बैठे, जो आगे चल कर एक कामयाब आविष्कार में बदल गया। जुगाड़ सभी जगह चलता है। देश की राजधानी दिल्ली के इर्द-गिर्द शहरों-कस्बों में जुगाड़ सड़कों पर फर्रांटा भरते नजर आते हैं। मोटरसाइकिल के इंजन, स्टीयरिंग और रिक्शा-साइकिल के पहियों से बने ये जुगाड़ खेतों की फसल से लेकर शहरों में वजनदार सब्जी-भाजी, रद्दी और दूसरी चीजों को आसानी से ढोते लेते हैं। कहीं-कहीं तो उनसे सवारियां भी ढोई जाती हैं। मजे की बात यह कि इन पर न तो नंबर प्लेट होती है, न चलाने वाले के पास ड्राइविंग लाइसेंस। दावा तो यह भी किया जाता है कि पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा में दौड़ते ऐसे ही जुगाड़ों को देख कर रतन टाटा को नैनो कार बनाने का खयाल आया।

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