जेलों में जाति के आधार पर काम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ख़फ़ा, ऐतिहासिक फ़ैसले की उम्मीद,

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने यह फटकार उत्तर प्रदेश सरकार के वकीलों को पिछले दिनों लगाई है.

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया था कि यूपी की जेलों में क़ैदियों के साथ कोई जातिगत भेदभाव नहीं होता है.

इस दावे को सुनने के बाद डीवाई चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश की जेल नियमावली के कुछ प्रावधान पढ़ते हुए उन्हें फटकार लगाई.

सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में क़ैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा है.

हालांकि छह महीने बीतने के बाद भी केवल उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने ही अपना जवाब कोर्ट में दाखिल किया है.

दरअसल, यह पूरा मामला पत्रकार सुकन्या शांता के प्रयासों की वजह से सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा है और चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है.

सुकन्या शांता मानवाधिकार क़ानून और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर लिखती हैं.

उन्होंने अपनी ख़बरों के ज़रिए जेल में जातिगत भेदभाव का मुद्दा उठाया. उन्होंने इस मुद्दे पर 2020 में शोधपरक रिपोर्ट तैयार की थी.

इसमें उन्होंने भारत के 17 राज्यों के लिए जेलों में जाति के आधार पर काम के विभाजन पर एक रिपोर्ट तैयार की.

और यह बताने की कोशिश की किस तरह से क़ैदियों में काम का वितरण उनकी जाति के आधार पर होता है

सुकन्या शांता ने अपनी रिपोर्ट में राजस्थान की अलवर जेल के क़ैदी अजय कुमार की मुश्किलों को साझा करते हुए बताया था कि जेलों में जाति आधारित भेदभाव कैसे होता है.

जाति के अनुसार, काम का विभाजन कैसे किया जाता है? उन्होंने इस रिपोर्ट में कहा था कि अगर कोई नाई होगा तो जेल में उसे बाल और दाढ़ी बनाने का काम मिलेगा, ब्राह्मण क़ैदी खाना बनाते हैं और वाल्मीकि समाज के क़ैदी सफ़ाई करते हैं.

उन्होंने राजस्थान के अलावा कुछ अन्य राज्यों के जेल नियमों की भी जांच की और वहां जाति आधारित नियम देखे.

सुकन्या की रिपोर्ट प्रकाशित होते ही राजस्थान हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को जेल के नियमों में बदलाव करने का आदेश दिया. इसी के तहत राजस्थान सरकार ने अपने जेल नियमों में बदलाव किया था.

सुकन्या को लगा कि राजस्थान में बदलाव के बाद अगर क़ानूनी रास्ता अपनाया जाए तो अन्य राज्यों में भी बदलाव लाया जा सकता है. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

सुकन्या शांता ने दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की. याचिका दाख़िल करने से पहले उन्होंने ‘क्या जेलों में कोई और भेदभाव हो रहा है’ पर विस्तृत शोध किया और यह पाया कि वंचित और उपेक्षित समुदाय के क़ैदियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है.

कुछ राज्यों के जेल नियमों में अधिसूचित जनजातीय समुदाय के क़ैदियों को आदतन अपराधी कहा गया है.

सुकन्या की वकील दिशा वाडेकर ने बीबीसी मराठी से कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ध्यान में तीन प्रमुख मुद्दे लाए गए हैं- जेल में जाति के आधार पर क़ैदियों का बँटवारा, यानी हर जाति के लिए अलग बैरक, जाति के हिसाब से काम का बँटवारा और अधिसूचित जनजातियों के प्रति भेदभाव.