झारखंडः झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने शुरू की ‘संघर्ष यात्रा’

रांचीः आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार को शिकस्त देने के लिए झारखंड की मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कोल्हान की धरती पर ‘संघर्ष यात्रा’ की शुरुआत की है. मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र जमशेदपुर के उलियान स्थित शहीद निर्मल महतो की समाधि स्थल से जेएमएम द्वारा सोची-समझी रणनीति के तहत निकली गयी झारखंड संघर्ष यात्रा के तहत पार्टी ने कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिलों में सप्ताह भर में 700 गांव तक जाने का टारगेट सुनिश्चित किया है.

वहीं, बीजेपी जेएमएम की इस यात्रा को एक ढोंग बात रही है. मिशन 2019 को लेकर केंद्र और राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा विकास की बात कह कर एक बार फिर से जीत का इतिहास रचने को लेकर अपने भारी-भरकम संगठन के बलबूते जनता का विश्वास जीतने में लगी है. तो वहीं, झारखंड की सियासत में गहरी पैठ रखने वाली जेएमएम ने भी झारखंड अस्मिता को बचाने की बात कह कर एक और संघर्ष की राह पर निकल पड़ा है.

अलग राज्य के खातिर खुद को शहीदों की पार्टी कहने वाली जेएमएम ने इसके लिए कोल्हान को चुना है. संघर्ष यात्रा की शुरुआत पार्टी के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष शहीद निर्मल महतो की जमशेदपुर स्थित समाधि स्थल पर श्रधांजलि के साथ हुआ, जिसमें जेएमएम के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन, कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन समेत कोल्हान से पार्टी विधायक, प्रदेश और कोल्हान के तीनों जिलों के आये बड़ी संख्या में कार्यकर्ता शामिल हुए.

शहीद स्थल मैदान पर ही एक संक्षिप्त सभा हुई, जिसमें झारखंड को बचाने के लिए एक और संघर्ष की जरूरत पर बल दिया गया. पूर्व मुख्यमंत्री सह जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नेतृत्व में निकाली गई संघर्ष यात्रा को पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सह पूर्व सीएम शिबू सोरेन ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. पार्टी की इस मुहिम पर केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन बताते हैं कि सरकार की जन विरोधी नीतियों को लेकर अब समय आ गया है ‘एक और संघर्ष करने की.’

संकेत साफ तौर पर भाजपा सरकार पर था. झारखंड राज्य बनाने के लिए यहां के लोगों ने कुर्बानी दी है. भाजपा का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि उन लोगों के पास पैसा और सत्ता की ताकत है, ऐसे में गरीब आदिवासी-मूलवासी के पास संघर्ष करने के सिवाय और कोई चारा नही है.

वैसे बीजेपी ने इस संघर्ष यात्रा का पलटवार करते हुए कहा है कि अगर हेमंत जिस समय सत्ता में थे तो उस समय विकाश के लिए संघर्ष क्यों नही किये. संघर्ष यात्रा ढोंग है.

बहरहाल, आनेवाले चुनावों में आशातीत सफलता को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा विकास के बल पर जनता का एक बार फिर से समर्थन पाने को लेकर आगे बढ़ रही है तो दूसरी तरफ खुद को झारखंडी आवाम की पार्टी बताकर जेएमएम ने भी संघर्ष का रास्ता अपना कर लोगों के मन को टटोलने की सियासी दांव-पेंच की रणनीति के तहत चुनावी मैदान में ताल ठोक कर उतर पड़ी है. ऐसे में आनेवाले चुनावों में झारखंड की जनता किसे चुनती है, यह तो सब कुछ चुनाव परिणाम पर ही निर्भर करता है.

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