तनाव के माहौल में विकास की बातें
राहुल गांधी ने अपने अमेरिकी दौरे पर जहां भारत की बिगड़ती आर्थिक स्थिति पर कुछ सच्ची बातें कहीं, वहीं सहनशीलता और अमन-शांति को लेकर झूठ भी इतना बड़ा बोला कि उसका विश्लेषण जरूरी हो गया है। मेरे जैसे वरिष्ठ राजनीतिक पंडितों को मालूम है कि राजनेताओं को कभी झूठ बोलना ही पड़ता है, लेकिन इन झूठों का एक दायरा होता है और उस दायरे को पिछले हफ्ते राहुलजी ने एक बहुत बड़ा झूठ बोल कर तोड़ डाला। राहुलजी ने किसी अमेरिकी विश्वविद्यालय के भारतीय छात्रों से बातें करते हुए कहा कि वे जानते हैं कि भारत बहुत बदनाम हुआ है पिछले तीन वर्षों में। ‘कांग्रेस के दौर में सहनशीलता और अमन-शांति के लिए जाना जाता था भारत, आज मुझे लोग पूछते हैं कि आपके भारत को क्या हो गया है, क्यों इतना बदल गया है।’
कांग्रेस के उपाध्यक्ष की यह बात सुन कर मैं इतना हैरान हुई कि फौरन गूगल करके भारत में हिंसक घटनाओं के आंकड़े खोजे। एक लंबी फेहरिस्त निकल कर आई जिसमें 1024 में सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनी के हमले से लेकर 2014 में हुए सहारनपुर के दंगों का जिक्र था। राहुल गांधी के साथ जो उनके सलाहकार यात्रा कर रहे हैं, अगर सिर्फ इस फेहरिस्त को खोजते तो जरूर उनको सलाह देते कि सोच-समझ कर सहनशीलता और अमन-शांति की बातें करनी चाहिए। इसलिए कि जितने दंगे और जितना खून-खराबा कांग्रेस के दौर में हुआ है उसका मुकाबला फिलहाल भारतीय जनता पार्टी नहीं कर सकती है। यह वह दौर था जब मैं रिपोर्टर का काम करती थी और याद है मुझे कि किस तरह हर साल किसी बड़े दंगे पर रिपोर्टिंग करने जाना पड़ता था।
मेरठ, मलियाना, हाशीमपुरा, भागलपुर, मुंबई, मुरादाबाद जैसे नाम आज भी अटके हैं मेरे दिमाग में। इन नामों को याद करती हूं तो सहमे हुए, कर्फ्यूजदा शहर याद आते हैं। नफरत की दीवारों से बंटी हुई बस्तियां याद आती हैं, औरतों के डरे हुए चेहरे याद आते हैं और भूखे-प्यासे बच्चों का रोना याद आता है। ये दंगे-फसाद ज्यादातर हुए थे कांग्रेस मुख्यमंत्रियों के समय में, इसलिए कि तकरीबन हर जगह कांग्रेस की सरकारें थीं। भारतीय जनता पार्टी उन दिनों इतनी मामूली-सी पार्टी थी कि हिंदुत्व की जब बातें होती थीं, तो जिक्र आता था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ज्यादा और भाजपा का कम।सांप्रदायिक दंगों के अलावा अशांति के कारण और भी थे। याद है मुझे कि कैसे हम दौड़े-दौड़े घूमा करते थे अमृतसर, कश्मीर और श्रीलंका के बीच, जहां भारतीय सेना शांति के लिए अक्सर बुलाई जाती थी। यह तमाम अशांति फैली थी भारत सरकार की गलत नीतियों के कारण।
याद है मुझे कि 1984 में किस तरह आॅपरेशन ब्लू स्टार समाप्त ही हुआ था अमृतसर में कि इंदिरा गांधी ने फारूक अब्दुल्ला की सरकार श्रीनगर में गिरा कर एक पिट्ठू सरकार बिठाई, जो जड़ बन गई उस कश्मीर समस्या की, जिससे हम आज भी जूझ रहे हैं। इंदिराजी के बाद राहुल के पिताजी आए, जिनके दौर में अशांति ज्यादा बढ़ गई इन दोनों राज्यों में, क्योंकि तब तक पाकिस्तान का दखल शुरू हो गया था। राजीव गांधी ने ऊपर से श्रीलंका में नया मोर्चा खोल दिया तमिल आतंकवादी संस्थाओं को भारतीय सेना द्वारा प्रशिक्षण देकर। ये संस्थाएं जब बेकाबू हुर्इं तो भारतीय सेना को जाफना भेजा गया उनके साथ युद्ध करने के लिए और उनके हथियार वापस लेने के लिए।
उन दिनों भारतीय सेना कुछ पत्रकारों को जाफना लेकर गई थी, जिनमें मैं भी थी। इरादा था हमको यह दिखाना कि अब वहां शांति बहाल हो गई है, लेकिन वहां पहुंचने पर भारतीय सेना के अफसरों से पता चला कि शांति लाने में उनको कई वर्ष लग सकते हैं। सो, उस दौर और वर्तमान दौर की तुलना अगर की जाए तो ऐसा लगता है कि भारत में शांति भी है आज और सहनशीलता भी, क्योंकि पिछले तीन वर्षों में न युद्ध की स्थिति पैदा हुई है और न ही कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा हुआ है भारत में। ऐसा कहने के बाद लेकिन यह भी कहना जरूरी है कि इस शांति की चादर के नीचे एक अजीब किस्म का तनाव भी है।
यह कैसा तनाव है, सुनिए एक बुजुर्ग मुसलमान की जबानी, जो मुझे गोरखपुर की बड़ी मस्जिद में कुछ महीने पहले मिला था। मैंने जब इस बुजुर्ग से पूछा कि मोदी के दौर में मुसलमान क्यों अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं, जबकि एक भी बड़ा दंगा नहीं हुआ है, तो उन्होंने कहा, ‘दंगे जब होते हैं तो उनके खत्म होने के बाद एकदम अमन-शांति कायम हो जाती है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि पूरे माहौल में नफरत और खौफ घोल दिया गया है, जिसका मकसद है मुसलमानों को खौफजदा रखना।’
जब उन बंदों को रिहा कर दिया जाता है, जिनके नाम पहलू खान ने मरने से पहले बताए थे पुलिस को, तो तनाव बढ़ेगा ही। जब गोरक्षकों की पहुंच इतनी लंबी हो कि राजस्थान के गृहमंत्री के दखल से छूट जाते हैं पहलू खान के तथाकथित हत्यारे, तो तनाव तो बढ़ेगा ही। इस तनाव से सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है प्रधानमंत्री मोदी का व्यक्तिगत तौर पर। एक तरफ वे अपनी छवि दुनिया की नजरों में बना रहे हैं एक आधुनिक राजनेता की, जिसकी प्राथमिकता हैं बुलेट ट्रेनें और इस तरह की अन्य विशाल योजनाएं और दूसरी तरफ हैं मोदी के मुख्यमंत्री, जिनके राज में बेगुनाहों की हत्याएं होती हैं और हत्यारों को पनाह मिलती है।
मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले वादा किया था कि वे सबका साथ सबका विकास करके दिखाएंगे। ऐसा करना चाहते हैं, तो उनको अपने उन मुख्यमंत्रियों की खबर लेनी होगी, जो कानून-व्यवस्था का मजाक उड़ा रहे हैं गोरक्षा के नाम पर।