तवलीन सिंह का कॉलम, वक्त की नब्ज- नोटबंदी का हासिल कुछ नहीं
नोटबंदी की सालगिरह पर पिछले हफ्ते दोनों पक्षों ने अपने आप को सही साबित करने की कोशिश की। वित्तमंत्री ने दावा किया कि नोटबंदी करके नरेंद्र मोदी ने साबित किया है दुनिया की नजरों में कि भ्रष्टाचार और काले धन को मिटाने के इस महासंग्राम में वे अपने राजनीतिक फायदे और अपनी लोकप्रियता को भी ताक पर रख सकते हैं। दूसरी तरफ थे अपने अक्सर मौन रहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री, जिन्होंने फिर से सरेआम दोहराया कि नोटबंदी द्वारा मोदी ने जनता का पैसा सुनियोजित तरीके से लूटा है। दोनों पक्षों का खूब मजाक उड़ाया गया सोशल मीडिया पर। यह भी देखने को मिला पिछले दिनों कि इस देश के आम आदमी को अब नोटबंदी से कोई मतलब नहीं है। जिन्होंने नुकसान झेला उसकी वजह से, वे झेल चुके हैं और जिनको मोदी का यह कदम अच्छा लगा वे आज भी उसको अच्छा मानते हैं, लेकिन यह भी मानते हैं कि भ्रष्टाचार अब भी सलामत है अपने इस भारत महान में। आज भी छोटे-मोटे सरकारी काम के लिए रिश्वत देनी पड़ती है आम भारतीय को और आज भी काला धन उनके पास है, जिनके पास पहले हुआ करता था। नोटबंदी से उनका कोई खास नुकसान नहीं हुआ है। सच तो यह है कि काला धन मिटाना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है अपने देश में, क्योंकि वास्तव में इसको मिटा दिया गया कभी, तो फौरन रुक जाएगी भारतीय चुनावों की गाड़ी। इसलिए कि काला धन हर चुनाव में र्इंधन का काम करता है। पत्रकारिता की दुनिया में एक अरसा गुजारा है मैंने, जिसमें अनगिनत चुनावों को करीब से देखा है, सो यकीन मानिए जब मैं कहती हूं आपसे कि चुनाव के समय हर चीज को खरीदा जाता है काले धन से।
होता यह है कि जब राजनीतिक दल टिकट बांटने की प्रक्रिया पूरी कर लेते हैं, तो उनके दफ्तरों में जमा हो जाते हैं वे लोग, जिन्हें प्रत्याशी बनाया गया है। जमा होते हैं उस पैसे को हासिल करने, जो पार्टी उनको देने के काबिल है। ज्यादातर यह प्रचार के लिए काफी नहीं होता, सो प्रत्याशी निकल पड़ते हैं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से चंदा बटोरने। जिनकी दोस्ती उद्योगपतियों से है, वे करोड़ों में इकट्ठा कर लेते हैं चंदा इस तरह और यह सारा पैसा जमा कर लेते हैं अपनी तिजोरियों में चुपके से। न पार्टी के आला अधिकारी इसके बारे में जानते हैं और न चुनाव आयोग की नजर इस खजाने पर आसानी से पड़ सकती है।
चुनाव अभियान शुरू होते ही अनुभवी राजनेता जान जाते हैं कि वे जीतने वाले हैं या हारने वाले। जब हारने के आसार दिखने लगते हैं, तो इस पैसे को तिजोरियों में ही छिपा कर रख लेते हैं। ईमानदार राजनेता इसको राजनीतिक कार्यों में खर्च करते हैं, आगे जाकर और जिनको जनता की सेवा के बहाने अपनी सेवा करनी होती है, वे इस पैसे को जमीन, जेवरात में तब्दील कर देते हैं। मजे की बात यह है कि काले धन के खिलाफ सबसे ज्यादा बोलने वाले भी राजनेता होते हैं और उसको बटोरने वाले भी। प्रधानमंत्री मोदी ने जो काले धन के खिलाफ मुहिम छेड़ी है, उससे लगता है कि उनके निशाने पर हैं विजय माल्या जैसे उद्योगपति, जिन्होंने देश का पैसा नाजायज तरीकों से विदेशी बैंकों में छिपा कर रखा है। आम भारतीय भी ऐसा ही सोचते हैं, लेकिन सच यह है कि असली काला धन भारत में ही है और इसको जमा किया है राजनेताओं ने जनता की सेवा के बहाने।
पिछले कुछ महीनों में लालू यादव और उनके परिजनों के घरों में जब आयकर विभाग के छापे पड़े, तो मालूम पड़ा कि इस परिवार के पास इतनी कोठियां और इतनी जमीन थी, जो इस देश के धनवान भी सिर्फ सपनों में देख पाते हैं। लालू यादव ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में चूंकि गर्व से बहुत बार कहा था कि उनके पिता चपरासी की नौकरी करते थे पटना के किसी सरकारी दफ्तर में, तो उनके धन पर कई सवाल किए गए। लेकिन उनकी तरह सैकड़ों और राजनेता हैं, जिनकी धन-दौलत पर अभी तक किसी की नजरें नहीं पड़ी हैं। जिस दिन लोग पूछने लगेंगे कि पूर्व मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के पास कहां से इतना पैसा आया है कि वे सत्ता में न रहते हुए भी राजाओं की तरह रहते हैं, तब शायद मोदी की इस मुहिम को असली कामयाबी मिलेगी। इतने चतुर हैं ये राजनेता कि इनको नोटबंदी से कोई नुकसान नहीं हुआ है।
एक जमाना था जब देश के अंदर काला धन छिपाना आसान नहीं था, सो सत्तर-अस्सी के दशकों में कई राजनेताओं ने अपना काला धन स्विस बैंक खातों में छिपा कर रखा था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब भारत में ही रहता है इनका अधिकतर पैसा, लेकिन इतनी चतुराई से इसको छिपाया जाता है कि मोदी चाहे जितनी बेनामी कोठियां जब्त कर लें और चाहे जितनी फर्जी कंपनियां बंद करवा दें, यह काला धन काला ही रहेगा। विदेशों में भी पैसा पहुंचते ही जमीन-जायदाद में तब्दील हो जाता है। सो, 2014 के चुनाव अभियान के दौरान काले धन को वापस लाने के जो दावे किए गए थे वे वास्तव में चुनावी जुमले ही थे।
यथार्थ यह है कि बाबा रामदेव किस्म के महान अर्थशास्त्रियों के अलावा ऐसा एक भी अर्थशास्त्री नहीं मिलेगा, देश-विदेश में, जो यकीन से कह सके कि भारत से बाहर ले जाया गया पैसा कभी वापस लाया जा सकता है। प्रधानमंत्री के इरादे बेशक नेक हैं, लेकिन अगर अर्थव्यवस्था में जान फूंकना चाहते हैं अगले आम चुनाव से पहले, तो इस काले धन वाली मुहिम को भूल कर उन्हें निवेशकों को आकर्षित करने की मुहिम शुरू करनी होगी। नोटबंदी से हासिल नहीं हुआ है अगर काला धन तो किसी और ढंग से भी नहीं होने वाला है।