तुम भूल न जाओ इनको…

मेरे वतन के लोगों…’ 55 सालों से देश की नसों में दौड़ रहा है। इस गीत ने राजा और रंक दोनों की आंखें नम की हैं। शहादत का सम्मान करते हुए सरकारें अपनी तरह से मदद देती हैं। सेना तोपों की सलामी से शहीदों को अंतिम विदाई देती है। जनता शहीदों के सम्मान में आंखें गीली कर उन्हें अपने दिल में जगह देती है। फिल्मजगत ने शहीदों के सम्मान के रूप में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों…’ जैसा गाना दिया। ‘ऐ मेरे वतन के लोगों…’ सरकार की प्रेरणा पर फिल्मजगत की पहलकदमी थी। इसे शहीदों की कुर्बानी को याद करने के लिए रचा गया था। मगर इसका उद्देश्य था 1962 में मिली पराजय के बाद हताश हुई भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाना। गाने का अंतिम बंद है – जय हिंद, जय हिंद की सेना… गाने के कुछ अंतरों में सेना की रेजिमेंटों का हवाला था और कहा गया था कि हमारे एक वीर सैनिकों ने दस-दस को मारा था…

बहरहाल, सरकार ने जब फिल्मवालों की ओर मदद के लिए देखा तो महबूब खान एक दिन कवि प्रदीप के घर पहुंचे और उनसे सेना की मदद करने के लिए एक गाना लिखने का अनुरोध किया। चूंकि यह सरकारी पहलकदमी पर लिखा गया था, इसलिए प्रदीप को इसके लिए कोई पारिश्रमिक नहीं मिला। प्रदीप चाहते थे कि यह गाना लता मंगेशकर गाए। लता उस वक्त व्यस्त थीं, तो उन्होंने पहले तो मना कर दिया। ज्यादा जोर देने पर कहा कि इसे दो गाना बना दिया जाए। आशा और लता की आवाज में 27 जनवरी 1963 को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में इसे पहली बार गाया जाना था। अखबारों में आशा भोसले को भी इस गाने की एक गायिका बता कर विज्ञापन किया जा रहा था। आशा ने इस गाने के रिहर्सल में भी भाग लिया था।

 

इस गाने के संगीत का जिम्मा सौंपा गया सी रामचंद्र को, जिनके निर्देशन में लता कई गाने गा चुकी थीं और दोनों के बीच जबरदस्त तालमेल था। मगर कुछ कारणों से 1958 से लता मंगेशकर और सी रामंचद्र में बोलचाल बंद थी। अण्णा यानी सी रामचंद्र ने 26 जनवरी, 1963 को लता मंगेशकर को इस गाने का टेप दे दिया। मगर आखिरी समय में आशा ने लता से कहा कि वह दिल्ली नहीं जाएंगी। लता मंगेशकर समेत कई संगीतकारों ने आशा भोसले को मनाने की कोशिश की, मगर वह अपने निर्णय पर अडिग रहीं। लिहाजा 26 जनवरी, 1963 को मुंबई से एक फ्लाइट पकड़ कर लता, दिलीप कुमार, महबूब खान, राज कपूर, शंकर जयकिशन, रामचंद्र के सहायक रहे मदन मोहन आदि दिल्ली रवाना हुए। फ्लाइट में लता मंगेशकर ने उस गाने को सुना जो सी रामंचद्र ने टेप में दिया था। 27 जनवरी को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में इसे गाया। गाने के बाद स्टेज के पीछे लता से महबूब खान ने कहा कि नेहरूजी उन्हें बुला रहे हैं। नेहरू ने लता मंगेशकर की तारीफें की और कहा कि गाना सुन कर उनकी आंखें भीग गर्इं।
यह गाना दिल्ली में जब पहली बार गाया गया तब न तो वहां सी रामचंद्र थे और न ही इसके गीतकार कवि प्रदीप। बाद में जब नेहरू को मुंबई जाने का मौका मिला तो उन्होंने जाकर कवि प्रदीप से विशेष रूप से मुलाकात की। मगर अण्णा आखिर तक उपेक्षित रहे। अण्णा ने शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत के मेल से जो गाने रचे वे खूब लोकप्रिय रहे। ‘ऐ मेरें…’ से पहले अण्णा ने ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे…’ (शहनाई, 47), ‘मेरे पिया गए रंगून…’ (पतंगा, 49), … जैसे लोकप्रिय गाने दिए थे।

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