‘देश में नौकरियां कम होना अच्छा संकेत’, पीयूष गोयल के इस बयान से राहुल गांधी दुखी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने रेल मंत्री पीयूष गोयल के उस बयान को ‘असभ्य’ बताया है, जिसमें उन्होंने देश में कम होती नौकरियों को ‘अच्छा संकेत’ बताया था। गुरुवार (5 अक्टूबर) को वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम की इंडिया इकॉनमिक समिट में बोलते हुए भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल ने कहा, ‘अगर टॉप 200 कंपनियां नई नौकरियां सृजित नहीं करती तो पूरे व्यापारिक समाज के लिए समाज को साथ खींच पाना मुश्किल होगा और फिर, आप लाखों-करोड़ों को पीछे छोड़ देंगे।’ इस पर पीयूष गोयल ने टोकते हुए कहा था, ”क्या सुनील ने जो कहा, मैं उसमें कुछ और जोड़ सकता हूं। सुनील ने कहा कि कंपनियां रोजगार घटा रही हैं जो कि अच्छा संकेत है। तथ्य यही है कि आज, कल का युवा सिर्फ नौकरी की तरफ नहीं देख रहा। वह नौकरी देने वाला बनना चाहता है। देश आज ज्यादा से ज्यादा युवाओं को एंटरप्रेन्योर बनने की इच्छा रखते देख रहा है।” राहुल गांधी ने इसी बयान से जुड़ी खबर का लेख शेयर करते हुए लिखा, ”यह बेहद अपमानजनक है। मैं इस तरह का बयान देखकर दुखी हूं।”
रोजगार सृजन के मुद्दे पर राहुल गांधी केंद्र की एनडीए सरकार को घेरते आ रहे हैं। गुजरात दौरे में भी उन्होंने नौकरियों की कमी का मुद्दा उठाया था। उसके बाद अपने संसदीय क्षेत्र में जाने पर राहुल ने गुरुवार को कहा कि इस समय देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती कृषि और रोजगार के क्षेत्र में है। इन दोनों ही मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नाकाम साबित हुए हैं। राहुल ने कहा कि चीन प्रतिदिन 50 हजार रोजगार का सृजन कर रहा है, जबकि मोदी के मेक इन इंडिया, स्टार्टअप और स्टैंडअप के जरिए महज 450 लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था हो पा रही है।
उन्होंने कहा था, “प्रधानमंत्री को यह स्वीकार करना चाहिए कि देश में संकट की स्थिति है। मोदी जी को चाहिए कि वे लोगों को भ्रमित करने और बहाने बनाने की बजाय उसे दूर करने का प्रयास करें।” राहुल ने कहा, “देश में इस समय दूसरी सबसे बड़ी समस्या कृषि और किसानों से जुड़ी है। आज किसान आत्महत्या कर रहे हैं। विपक्ष का नेता होने के नाते मैं मोदी जी को सलाह देना चाहूंगा कि उन्हें इन दो समस्याओं पर ध्यान केंद्रित कर इसका समाधान निकालना चाहिए।”
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री को बहाने बनाने और यह कहने के बजाय कि निराशावादी लोग ऐसा माहौल बना रहे हैं, उन्हें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि वे जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं।