धारा 377: केंद्र नहीं देगा चुनौती, सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 को लेकर सुनवाई की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (10 जुलाई) को पांच जजों की संविधान पीठ ने समलैंगिक रिश्ते अवैध हैं या नहीं, इस मामले पर सुनवाई शुरू की, जो आज भी यानी बुधवार को भी जारी रहेगी। इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के विवेक के ऊपर फैसला छोड़ दिया है। उच्चतम न्यायालय में एएसजी तुषार मेहता द्वारा केंद्र सरकार की तरफ से ऐफिडेविट सौंपा गया, जिसमें सरकार ने यह कहा है कि धारा 377 पर क्या फैसला लेना, वह सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ती है। सरकार के मुताबिक अब समलैंगिक संबंधों को वैध माना जाए या अवैध, इस पर कोर्ट अपने विवेक से ही फैसला करेगा।

बता दें कि मंगलवार को इस धारा 377 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जमकर दलीलें पेश की गईं। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए कहा कि समलैंगिक रिश्तों को अपराध नहीं माना जाना चाहिए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट के साल 2009 के फैसले को पलटते हुए समलैंगिक संबंधों को धारा 377 के तहत अपराध करार दिया था, जिसके बाद कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की गई थीं। इन याचिकाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की जा रही है।

इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को संविधान पीठ द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के विरुद्ध याचिकाओं पर 10 जुलाई को प्रस्तावित सुनवाई स्थगित करने की मांग करने वाली केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी। केंद्र ने मामले के संबंध में जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से समय मांगा, जिसके बाद प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मामले को स्थगित करने से इंकार कर दिया। मंगलवार को सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने दलील पेश करते हुए कहा कि अलग सेक्सुअल पसंद को अपराध मानना ठीक नहीं है।

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