नरेंद्र मोदी के लिए खतरा बनना चाहते थे प्रवीण तोगड़िया, ऐसे कटते चले गए पर

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता प्रवीण तोगड़िया ने मंगलवार को आरोप लगाया कि ‘‘कुछ लोग’’ उनकी आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें एक पुलिस मुठभेड़ में मारने की साजिश रची गई थी। सोमवार को विहिप नेता कुछ समय के लिए लापता हो गए थे। तोगड़िया (62) ने भावुक होते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये आरोप लगाए। जिस ढंग से उन्होंने केंद्र के अधीन इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया, उससे निशाना नरेंद्र मोदी सरकार तक जा रहा है। ऐसे वक्त में एक बार फिर दोनों नेताओं के रिश्ते को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। नरेंद्र मोदी और प्रवीण तोगड़िया एक जमाने में गहरे दोस्त हुआ करते थे। साथ-साथ ही संघ के पदाधिकारियों से मुलाकात करते थे। लेकिन वक्त के साथ-साथ उनके रिश्ते भी तार-तार हो गए। साल 2013 में विहिप नेता ने गुजरात को 2015 तक हिंदूवादी राज्य घोषित करने का एेलान किया था। उस वक्त तोगड़िया यह बात जानते थे कि गुजरात में अब विहिप का कोई आधार नहीं रह गया है।

2007 और 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में उन्हें नजर आ चुका था। इन दोनों चुनावों में नरेंद्र मोदी को भारी मतों से जीत मिली थी। इसके बाद से राज्य में विहिप की नाव डूबने लगी। इसके बाद उन्होंने 2013 में एेलान किया कि वह अगले दो वर्षों में गुजरात के 18 गांवों में वीएचपी की पैंठ मजबूत करेंगे।

नरेंद्र मोदी का सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता ‘इंडिया फर्स्ट’ का था, वहीं तोगड़िया हिंदुत्व की राजनीति पर खड़े थे। इसी वजह से टकराव की स्थिति पैदा हुई। 2012 के चुनावों में विहिप ने खुद को नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ खड़ा किया था। 3 महीने के भीतर विहिप कार्यकर्ताओं ने नरेंद्र मोदी को नुकसान और केशुभाई पटेल और गोर्धन जुडाफिया गुजरात परिवर्तन पार्टी (GPP) को फायदा पहुंचाने की भरसक कोशिश की। इसका मकसद नरेंद्र मोदी की जीत का मार्जिन एवं सीटें कम करना और उनके राष्ट्रीय राजनीति में आने के सपने को तोड़ना था।

तोगड़िया ने नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों पर भी जमकर हमला किया। तोगड़िया ने कहा कि जिस तरह सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों की शिक्षा का खर्चा उठाती है, उसी तरह हिंदुओं की जिम्मेदारी भी उसी की है। हज पर सरकार की ओर से खर्च की जाने वाली रकम से लेकर मुस्लिमों के लिए यूनिफॉर्म फैमिली पॉलिसी की बात उन्होंने कही। इससे न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि नरेंद्र मोदी की छवि पर सवाल उठना शुरू हो गए थे।साल 2007 के गुजरात विधानसभा चुनावों में तोगड़िया को गुजरात से बाहर रहने के लिए मजबूर किया गया था। इससे उनकी रही-सही जमीन भी खिसकती चली गई। 2002 के चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी की छवि विकास करने वाले एक सख्त की रही है और वह इसे किसी कीमत पर खोना नहीं चाहते।

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