नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल में ठंडे बस्‍ते में डाले गए 2.4 लाख करोड़ के लोन, ममता बनर्जी भड़कीं

नरेंद्र मोदी की सरकार ने नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी दी है। वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने लिखित जवाब में संसद को बताया कि केंद्र सरकार ने पिछले तीन वर्षों में (अप्रैल, 2014 से सितंबर, 2017 के बीच ) 2.41 लाख करोड़ के कर्ज को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। केंद्रीय मंत्री ने राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि एनपीए या जोखिम वाले कर्ज को ठंडे बस्ते में डालने का कदम नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है। बैंक अपने बैलेंस शीट को दुरुस्त करने के लिए अक्सर ऐसा करती रहती है। शिव प्रताप शुक्ला ने कहा, ‘ग्लोबल ऑपरेशन पर आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, सरकारी बैंकों ने वित्त वर्ष 2014 से 2017 (सितंबर) के बीच कुल 2,41,911 करोड़ रुपये के कर्ज को ठंडे बस्ते में डाला। निर्धारित कानूनी प्रावधानों के तहत वसूली की प्रक्रिया भी चल रही है, ऐसे में कर्ज को ठंडे बस्ते में डालने से कर्ज लेने वालों को कोई फायदा नहीं होगा।’

सरकार नहीं देगी कर्जदारों का ब्यौरा: केंद्रीय मंत्री ने आरबीआई का हवाला देते हुए सदन को बताया कि कर्जदारों के बारे में ऐसा कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं है, जिसका खुलासा किया जा सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरबीआई अधिनियम के तहत कर्जदारों के बारे में बैंकों द्वारा दी गई जानकारी गोपनीय है। बता दें कि पिछले कुछ वर्षों में सरकारी बैंकों पर एनपीए का बोझ कम होने के बजाय लगातार बढ़ता ही जा रहा है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 21 सरकारी बैँक एनपीए की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। 31 दिसंबर तक 8.26 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को एनपीए घोषित किया जा चुका था।

कर्ज माफी से ममता बनर्जी भड़कीं: मोदी सरकार द्वारा तीन वर्षों में तकरीबन ढाई लाख करोड़ रुपये की कर्ज माफी से पश्चिम बंगाल की मुख्मंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भड़क गई हैं। उन्होंने फेसबुके पर पोस्ट लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की। कर्ज को ठंडे बस्ते में डालने पर ममता ने लिखा, ‘मैं यह देख कर (कर्ज को ठंडे बस्ते में डालने के कदम पर) हैरान हूं कि यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब कर्ज के बोझ से दबे किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं और मांग के बावजूद सरकार किसानों का कर्जा माफ करने पर विचार भी नहीं कर रही है। अब सरकार कह रही है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज का खुलासा भी नहीं किया जा सकता है।’

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