नहीं बुझी भलस्वा की आग, इलाका छोड़ने को मजबूर लोग
भलस्वा लैंडफिल साइट पर दो दिनों से भयंकर आग लगी है। लैंडफिल साइट का बहुत बड़ा हिस्सा आग की चपेट में आ चुका है। आग की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां से उठ रहे धुएं के गुबार को कई मील दूर से देखा जा सकता है। एक तरफ कचरे से निकलती जहरीली गैसें और दूसरी तरफ आग व धुएं से पर्यावरण को दोहरा नुकसान हो रहा है। इसके बावजूद भलस्वा पर राजनीति जारी है। समस्या के समाधान का कोई ठोस उपाय अब तक नहीं किया जा सका है। यह इलाका गैस चैंबर का रूप ले चुका है। लोग आॅक्सीजन के रूप में जहरीली हवा लेने को मजबूर हैं। इलाके के निवासी मोहम्मद शोएब ने बताया कि भलस्वा में कूड़े का अंबार सरकार की ओर से तय ऊंचाई से लगभग दोगुना हो गया है, इसके बावजूद यहां कूड़ा फेंका जाना बदस्तूर जारी है।
एक दूसरे निवासी शुभम का कहना है कि उन्होंने बताया कि धुएं और जहरीली गैसों की वजह से कुछ परिवारों ने पलायन भी कर लिया है। इलाके के लोगों का कहना है कि सरकार की अनदेखी की वजह से अब उनके पास यह जगह छोड़ कर जाने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा है। एनएच-1 से गुजरने वाले कार सवार तो शीशा तो बंद करके जहरीली हवा में सांस लेने से खुद को बचा सकते हैं, लेकिन उन लोगों का क्या जो दोपहिया व वाहनों से गुजरते हैं। यह पीड़ा इस रास्ते से गुजर रहे आदित्य सिंह की है। आदित्य एक निजी बैंक में काम करते हैं। उनका कहना है कि यह इलाका इतना प्रदूषित हो चुका है कि यहां से गुजरने भर से सिर में दर्द और सांस लेने में तकलीफ के अलावा पसीना आने लगता है। दूसरी ओर स्थानीय लोगों का गुस्सा भी अब चरम पर पहुंच चुका है और वे सरकार को आंदोलन की चेतावनी दे चुके हैं। इसके बावजूद इस मुद्दे पर निगम की बैठकें बेनतीजा साबित हो रही हैं।
लैंडफिल साइट से थोड़ी दूर चाय की दुकान लगाने वाले बब्बन शर्मा का कहना है कि अखबारों में लगातार समस्याएं प्रकाशित हो रही हैं, लेकिन नेता राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। 25 तारीख को ही इस समस्या के समाधान के लिए निगम की बैठक बुलाई गई थी, लेकिन पक्ष और विपक्ष दोनों ही समस्या को सुलझाने के लिए फिक्रमंद नजर नहीं आए। इसी इलाके में रहने वालीं शबरीना ने बताया कि भलस्वा में आग काफी पहले से सुलग रही है। आग की लपटें कई बार रात में नजर भी आती हैं, लेकिन इसे बुझाने की कोई भी इच्छाशक्ति प्रशासन में नजर नहीं आती है।