नियुक्तियों में धांधली के आरोपों पर हाई कोर्ट का निर्देश

दिल्ली हाई कोर्ट ने नियुक्तियों में धांधली के आरोपों की जांच के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति प्रोफेसर योगेश त्यागी को एक स्वंतत्र समिति गठित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस समिति को नियुक्ति प्रक्रिया और उम्मीदवारों के प्रमाणपत्रों की जांच के बाद 12 हफ्ते के अंदर अपने फैसले की जानकारी याचिकाकर्ता प्रणव गंधर्व चौधरी को बताने के लिए कहा है। याचिकाकर्ता प्रणव के मुताबिक, उनकी पत्नी पूजा चौधरी, जो इस मामले में सह-याचिकाकर्ता भी हैं, आत्मा राम सनातन धर्म (एआरएसडी) कॉलेज के भौतिकी विभाग में 2010 से 2015 तक (कुछ समय को छोड़कर) तदर्थ शिक्षक के रूप में तैनात थीं। इस विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के लिए 3 फरवरी 2015 को कॉलेज की ओर से विज्ञापन जारी किया गया। इसी विज्ञापन के आधार पर पूजा सिंह ने भी इस पद के लिए आवेदन किया।

3 मार्च 2016 इन पदों के लिए चयन प्रक्रिया पूरी कर ली गई। प्रणव के मुताबिक, हमने सोचा कि पूजा का नंबर आया ही नहीं होगा लेकिन कुछ समय बाद हमें अखबारों के माध्यम से यह जानकारी मिली की नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है और नकली प्रमाणपत्रों के आधार पर ये नियुक्तियां हुई हैं। उन्होंने बताया कि हमने पहले जनहित याचिका (पीआइएल) दायर की जिसमें बाद में सर्विस रिट में बदल दिया गया जिसमें पूजा को भी सह-याचिकाकर्ता बनाया गया।

प्रणव ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि पूजा असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए पूरी तरह से योग्य थीं जबकि 7 से लेकर 11 नंबर तक के प्रतिवादी अयोग्य थे जिन्होंने अपनी नियुक्ति के लिए नकली प्रमाणपत्र जमा कराए थे। इस मामले पर 15 फरवरी को अपना फैसला सुनाते हुए जज सुनील गौर ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में विश्वविद्यालय के नियमों को नहीं मानने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं, 7 से 11 नंबर के प्रतिवादियों पर नियुक्ति के लिए नकली प्रमाणपत्र उपलब्ध कराने के भी संगीन आरोप हैं। कोर्ट ने डीयू के कुलपति को नियुक्तियों की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने को कहा है जो 7 से 11 नंबर के प्रतिवादियों की नियुक्ति प्रक्रिया की जांच करेगी। समिति इन प्रतिवादियों द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान जमा कराए प्रमाण पत्रों को भी देखेगी। कोर्ट ने समिति को अपने निर्णय की जानकारी 12 हफ्ते के अंदर याचिकाकर्ता को देने को कहा है। समिति के फैसले से अगर याचिककर्ता संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे आगे भी कानून की मदद ले सकते हैं।

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