निर्भया कोष के प्रबंधन से सुप्रीम कोर्ट नाखुश
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि निर्भया कोष के तहत यौन हिंसा पीडितों को दिए जाने वाले मुआवजे का मुद्दा निराशाजनक तस्वीर पेश करता है क्योंकि यह स्पष्ट ही नहीं है कि कब और किस चरण में इसका भुगतान किया जाएगा। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता के पीठ ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि पीड़ितों के मुआवजे के लिए निर्धारित धनराशि के वितरण और प्रबंधन की समेकित प्रणाली का अभाव है। पीठ ने कहा कि इस मामले में बहुत अधिक भ्रामक स्थिति है क्योंकि इससे तीन मंत्रालय गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और महिला व बाल विकास मंत्रालय जुड़ा है परंतु वे यह नहीं जानते कि करना क्या है। राजधानी में 16 दिसंबर, 2012 को एक युवती से सामूहिक बलात्कार व उसकी हत्या की सनसनीखेज वारदात के बाद केंद्र ने 2013 में निर्भया कोष की घोषणा की थी ताकि सरकार की पहल और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनकी गरिमा की रक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों को सहयोग दिया जा सके।
पीठ ने कहा कि यद्यपि केंद्र सरकार इस योजना के तहत राज्यों को धन मुहैया करा रही है लेकिन ऐसा लगता है कि यौन हिंसा पीडितों को मुआवजा कब और किस चरण में देने के बारे में कोई व्यवस्था नहीं है। यह बहुत ही निराशाजनक स्थिति है। अदालत ने केंद्र इस मामले में न्याय मित्र इंदिरा जयसिंह और दूसरे संबंधित अधिकारियों से कहा कि वे ऐसी पीड़ितों को मुआवजा देने और उनके पुनर्वास के बारे में अपने सुझाव दें। इस मामले में अब चार अक्तूबर को सुनवाई होगी। इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र के हलफनामे पर अप्रसन्नता व्यक्त की और ऐसे कई उदाहरणों को इंगित किया जिनमें राज्यवार ऐसी पीड़ितों की संख्या और उन्हें दिए गए मुआवजे की राशि का विवरण सही तरीके से नहीं दिया गया था।
पीठ ने कहा कि हलफनामा दाखिल करने से पहले इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए था। इससे पहले इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यौन हिंसा की पीड़ितों को आर्थिक सहयोग के बारे में कोई एकरूपता नहीं है। गोवा जैसे राज्य में ऐसे मामले में दस लाख रुपए का प्रावधान है जबकि कुछ अन्य राज्यों में एक लाख रुपए ही देने की व्यवस्था है। पीठ ने केंद्र सरकार के वकील को निर्देश दिया कि अदालत और न्यायमित्र द्वारा उठाए गए बिंदुओं का विवरण देते हुए बेहतर हलफनामा दाखिल किया जाए। दिल्ली में दिसंबर, 2012 की सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद 2012 और 2013 बीच सुप्रीम कोर्ट में छह याचिकाएं दायर की गई हैं। जिनमें महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाया गया है। इन सभी याचिकाओं को अदालत ने एकसाथ संलग्न कर दिया था।