निलंबित उत्तरा ने पूछा, यह कैसा न्याय है

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के जनता मिलन समारोह में अपने तबादले को लेकर हंगामा करने वाली प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा ने शुक्रवार को कहा कि वे इंसाफ के लिए अपनी लड़ाई खुद लड़ेगी। वे मुख्यमंत्री के यहां न्याय मांगने आई थी। उनका मकसद हंगामा करना नहीं था। वे आज संयत और शांत थीं, पर पीड़ा उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी। उन्होंने कहा कि वे न्याय मांगने गर्इं तो उन्हें नौकरी से निलंबित कर दिया गया। यह कैसा न्याय है। वे विधवा हैं और करीब 25 साल से पहाड़ों की दुर्गम, अति दुर्गम और सामान्य क्षेत्रों में प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर रही हैं। तीन साल पहले वे अपने पति को खो चुकी हैं। उत्तरा बताती हैं कि शराब और भू-माफियाओं ने उनके पति को शराब पिला-पिला कर मार डाला। शराब के कारण उनके पति सुखवीर बहुगुणा बीमार हो गए थे और उन्होंने बीमारी के चलते दम तोड़ दिया। वे प्रापर्टी डीलर थे। वे अपने बच्चों को पहाड़ से देहरादून ले आई। वे अकेली ही उत्तरकाशी के नौगांव विकासखंड के गांव ज्येष्ठबाडी गडोली के राजकीय प्राइमरी विद्यालय में तैनात हैं। उत्तरा पंत ने बताया कि वे 57 साल की हैं और अक्सर बीमार रहती हैं। 1993 में उत्तरकाशी के मोरी विकासखंड में उन्होंने सरकारी प्राइमरी स्कूल से अपनी नौकरी शुरू की थी। वे दुर्गम स्थान ज्येष्ठबाडी गडोली गांव में 2015 से तैनात हैं। उनके सेवानिवृत्त होने मेंतीन साल रह गए हैं। अब वे अपने बच्चों के पास देहरादून आना चाहती हैं। यही याचना करने वे मुख्यमंत्री के जनता दरबार में गई थीं। मगर मुख्यमंत्री उनकी बात सुनने को तैयार नहीं थे। उनकी पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे अब पहाड़ में नौकरी कर सकें। वे न तो नौकरी छोड़ सकती हैं और न ही बच्चों की देखभाल।

उत्तरा पंत बहुगुणा कहती हैं कि मुख्यमंत्री ने उनसे कहा कि नौकरी शुरू करते वक्त उन्होंने क्या यह शर्त रखी थी। यह भी कहा कि यह मंच तबादलों के लिए नहीं है। इस पर उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि उन्होंने वनवास भोगने के लिए भी नौकरी नहीं की थी। घर चलाने के लिए नौकरी की थी। जब उन्होंने मजबूती के साथ अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार कहती है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, तो क्या सरकार ऐसे ही बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की बात करेगी। साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री से मृदुभाषी होने की बात कही, जिस पर वे भड़क गए और उन्हें निलंबित करने और गिरफ्तार करने का आदेश वहां मौजूद अधिकारियों को दिया। तब उन्होंने चिल्ला कर अपनी बात रखनी शुरू की और वे गुस्से में बहुत कुछ कह गर्इं तो उन्हें पुलिस वाले बचाने के लिए बसंत विहार थाने ले गए और उनसे मीडिया से दूर रहने की बात कही। और उन पर धारा-151 लगाने की बात कही। उत्तरा का कहना है कि वे अंतिम दम तक न्याय के लिए संघर्ष करेंगी। उत्तरा को सूबे की महिला शिक्षा सचिव भूपिंद्र कौर औलख ने मुख्यमंत्री के आदेश के बाद निलंबित कर दिया है। शिक्षा विभाग का कहना है कि उत्तरा बहुगुणा 19 जुलाई 2017 से प्राइमरी स्कूल से गैरहाजिर चल रही थीं। वे 2015 से पहले चिन्यालीसौंण में तैनात थी। शिक्षा विभाग के मुताबिक उत्तरा इससे पहले भी मुख्यमंत्री आवास और सचिवालय में अपने तबादले को लेकर हंगामा कर चुकी हैं। इससे पहले भी वे सचिवालय के गेट पर हंगामा करने के आरोप में निलंबित हो चुकी हैं।

इंसाफ के लिए लड़ूंगी: उत्तरा पंत के सेवानिवृत्त होने मेंतीन साल रह गए हैं। अब वे अपने बच्चों के पास देहरादून आना चाहती हैं। उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री उनकी बात सुनने को तैयार नहीं थे। उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि वे अब पहाड़ में नौकरी कर सकें। वे न तो नौकरी छोड़ सकती हैं और न ही बच्चों की देखभाल। उन्होंने कहा कि वे इंसाफ के लिए अपनी लड़ाई खुद लड़ेगी।

पहले भी हुई हैं निलंबित: शिक्षा विभाग के मुताबिक, उत्तरा इससे पहले भी मुख्यमंत्री आवास और सचिवालय में अपने तबादले को लेकर हंगामा कर चुकी हैं। इससे पहले भी वे सचिवालय के गेट पर हंगामा करने के आरोप में निलंबित हो चुकी हैं।

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