नृत्यः ओडिसी की परंपरा की झलक
आंतरिक खुशी का प्राकट्य नृत्य में होता है। नृत्य के नव रस के जरिए कलाकार जीवन के अलग-अलग भावों को उकेरते हैं। कुछ ऐसी ही झलकियां ओडिसी नृत्यांगना कविता द्विवेदी के नृत्य में दिखी। वह स्पिक मैके के आयोजन में नृत्य पेश कर रहीं थीं। इस कार्यक्रम के दौरान उनकी शिष्या परिणीता ने बटु नृत्य पेश किया। उन्होंने इसमें ओडिसी की तकनीकी बारीकियों को दर्शाया। वहीं प्रस्तुति में संगत करने वाले सहयोगी कलाकारों में शामिल थे-पखावज पर प्रशांत महाराणा, मंजीरे पर प्रियंका दास, सितार पर यार मोहम्मद और गायन पर सुरेश सेठी। नृत्यांगना कविता द्विवेदी ने कम्युनिटी डेवलपमेंट एंड लीडरशिप समिट-2017 के तहत आयोजित समारोह में नृत्य पेश किया। उन्होंने शुरुआत मंगलाचरण से की। भगवान जगन्नाथ और विष्णु की आराधना के साथ उन्होंने नृत्य शुरू किया। विष्णु की स्तुति श्लोक शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभम पर आधारित थी। इसमें विष्णु के रूप के निरूपण के साथ ही, कविता ने कृष्ण की लीलाओं में से गोवर्धन पर्वत व कालिया मर्दन प्रसंग को समाहित किया। उन्होंने इसी पेशकश में छंद-सुपिच्छ मुच्छ मस्तक, सुनाद वेणु हस्तकम पर कृष्ण के रूप का सम्मोहक चित्रण पेश किया।
उनकी अगली प्रस्तुति पल्लवी थी। इसमें अंग, प्रत्यंग, उपांग के अनेक चलन को स्वर, लय और ताल के विभिन्न आवर्तनों पर लयकारी पेश किया। उन्होंने पैर की चौक स्थिति और त्रिभंगी भंगिमाओं के जरिए दपर्णी, अलस, अभिमानिनी, तोरण, नुपूर पादिका नायिकाओं की भंगिमाओं को नृत्य में मोहक अंदाज में निरूपित किया।
अभिनय में विभिन्न मुद्राओं, मुख व आंखों के भावों से वात्सल्य भाव को पेश किया। यशोदा और बाल कृष्ण के भावों की प्रस्तुति से पहले नृत्यांगना कविता ने नवरसों को मुखाभिनय व हस्तकों के जरिए दर्शाया। सितार की धुन और मरदल के ताल पर आधारित प्रस्तुति में कृष्ण को सुलाने की कोशिश करती माता यशोदा के भावों का यह विवेचन अर्प्रतिम था। इसमें नृत्यांगना की अभिनय की परिपक्वता और जीवन अनुभव की बानगी सहज ही दिखी। उन्होंने अपने नृत्य का समापन कृष्ण लीला से किया। यह उड़िया गीत काहीं गेला मुरली फूंका पर आधारित थी। इसमें गोपियों और कृष्ण के अनेक क्रीड़ाओं को नृत्यांगना प्रस्तुत किया। वास्तव में, कविता के नृत्य को देखते हुए, आप सहज ही उससे खुद को एकाकार कर लेते हैं। यह उनकी कला की खासियत बन गई है।