नृत्य मुद्राओं और भंगिमाओं की अनूठी प्रस्तुति
भारतनाट्यमनृत्यांगना मालविका सरूकई अपनी हर नृत्य प्रस्तुति को एक नया अनुभव मानती हैं। उनके अनुसार नृत्य जीवन के अनुभव का सार है। नृत्य सीखने के बाद एक कलाकार अपने विचार, वातावरण, अध्ययन, अहसास को अपने नृत्य में किसी न किसी रूप में शामिल करता है। तभी उसकी कला यात्रा पूर्ण होती है और वह दर्शक को भी साधारणीकरण के स्तर पर ले आता है। कलाकार के मन की बात दर्शक के मन तक नृत्य की मुद्राओं व भंगिमाओं के जरिए संप्रेषित हो जाती है। इसके लिए नृत्य की भाषा की पर्याप्त होती है।
निष्काम सेवा के भाव से प्रेरित स्पिक मैके अपनी सेवा के 40 वर्ष पूरा कर चुका है। इस सिलसिले में राजधानी दिल्ली में विरासत-2017 शृंखला का आयोजन किया गया। इसके तहत गार्गी कॉलेज, दीनदयाल उपाध्याय महाविद्यालय और लेडी इरविन कॉलेज में भरतनाट्यम नृत्यांगना मालविका सरूकई ने नृत्य पेश किया। उनके साथ श्रीलता, बालाजी, मुरली पाथर्सारथी और लक्ष्मी वेंकटरामन ने संगत की। लेडी इरविन कॉलेज में हुए समारोह में उन्होंने सूर्य वंदना, शृंगार लहरी, काम क्रीड़ा, तिल्लाना व वंदेमातरम प्रस्तुत किया।
नृत्य का आगाज सूर्य वंदना से हुआ। यह सूर्याष्टकम पर आधारित था। यह राग सूर्य कांतम और आदि ताल में निबद्ध था। नृत्यांगना मालविका ने गायत्री मंत्र के बोलों पर आधारित चारी भेद से नृत्य आरंभ किया। सूर्य के रथ को हस्तकों और मुद्राओं से निरूपित करते हुए, उन्होंने मोहक चलन पेश किया। मृदंगम के ताल अवतर्नों पर ‘रथारूढ़म को दर्शाने का उनका अंदाज सुंदर प्रतीत हुआ। वहीं सूर्य के रूप का विवेचन सरस था। दूसरी प्रस्तुति शृंगार लहरी थी। यह रचना शृंगार लहरी आश्रित शुभ पर आधारित थी, जो राग नीलांबरी व आदि ताल में निबद्ध थी। मैसूर लिंगराज के सौंदर्य, शृंगार, वाद्य यंत्र का विशद विवेचन करते हुए, इसमें उन्होंने शिव-पावर्ती के रूप का निरूपण किया।
कामदेव के प्रभाव और बसंत ऋतु के सौंदर्य की पराकाष्ठा का चित्रण अगली प्रस्तुति में था। भरतनाट्यम नृत्यांगना मालविका सरूकई की यह अन्यतम प्रस्तुति थी। जयदेव की अष्टपदी ललित लवंग लता परिशीलं को अक्सर नृत्यांगनाएं प्रस्तुत करती हैं। लेकिन, मालविका ने सरगम के स्वरों पर जिस अंदाज में बसंत व अनंग कामदेव के बाण के प्रभाव को अलग-अलग प्राणियों पर दर्शाया वह अनूठा था। उन्होंने विभिन्न स्वरों जैसे-षड़ज से मयूर, ऋषभ-बैल, मध्यम-क्रौंच, पंचम-कोकिला, धैवत-अश्व व निषाद-गज के चलन व भाव को मोहक तरीके से दर्शाया। राधा के विरह भावों को उन्होंने पूरी परिपक्वता और सहजता से निरूपित किया। यह पेशकश राग बसंत में निबद्ध थी।
उनकी अगली नृत्य प्रस्तुति लालगुड़ी जयरामन रचित तिल्लाना थी। यह राग मोहन कल्याणी और आदि ताल में निबद्ध थी। उन्होंने लयात्मक और गत्यात्मक अंग, पद व हस्त संचालन पेश किया। साथ ही, कृष्ण के रूप को बोल-सुंदर मोहिनी रूप मुदित पर चित्रित किया। उन्होंने नृत्य का समापन बंकिमचंद्र चटर्जी रचित वंदेमातरम से किया। देश को समर्पित यह भावभीना नृत्य था। यह नृत्य संवेदना से पूर्ण था।