नेताओं के खिलाफ मामलों की जानकारी नहीं दी, केंद्र के रवैये से सुप्रीम कोर्ट दुखी

देश भर अलग-अलग अदालतों में सांसदों और राजनेताओं के खिलाफ लंबित पड़े मामलों का विवरण मुहैया कराने में नाकाम रहने पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने लताड़ खानी पड़ी। गुरुवार (30 अगस्त) को जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस केएम जोसेफ की एक पीठ ने कहा, “भारत सरकार तैयार नहीं है” क्योंकि वह अदालत द्वारा मांगी गई जानकारी नहीं दे पाई। पीठ ने कहा, “सरकार हमें कुछ आदेश पास करने के लिए बाध्य कर रही है, जो कि हम इस वक्त नहीं चाहते। भारत संघ तैयार नहीं है। हम अपना दुख बयां करते हैं।” पीठ ने मामले की सुनवाई एक हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दी। सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे में हर फास्ट ट्रैक अदालत में लंबित पड़े मामलों की संख्या से संबंधित खास विवरण मौजूद नहीं है। कानून और न्याय मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने हलफनामे में कहा, “यह विभाग नियमित तौर पर संबंधित अदालतों में स्थानांतरित, निपटारे वाले और लंबित मामलों के बारे में जानकारी पेश करने के लिए संबंधित अधिकारियों के साथ मामला उठा रहा है।”

हलफनामे में सिर्फ संपर्क की सारिणी मौजूद है जबकि सांसदों और राजनेताओं के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या गायब है। वकील और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में दोषी सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध और आपराधिक मामलों के आरोपी सांसदों के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने की मांग की गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान नेताओं के खिलाफ कुल 1581 आपराधिक मामलों की घोषणा की गई थी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 सितंबर को होगी।

हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि दिल्ली में दो और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, करर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 1-1 विशेष अदालत शुरू की जानी थी। हलफनामे के मुताबिक तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों ने विशेष अदालतों को शुरू करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। तमिलनाडु में मामला मद्रास हाईकोर्ट में विचाराधीन बताया गया है।  कर्नाटक, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश, पटना, कोलकाता और दिल्ली हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत को सूचित किया है कि अतिरिक्त विशेष अदालत कोई जरूरत नहीं है, जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अतिरिक्त विशेष अदालत की आवश्यकता बताई है।

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