नेपाल में प्रचंड सरकार का पतन: अब किसकी बारी केपी ओली या शेर बहादुर देउबा?
नेपाल की संसद प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत हासिल करने में नाकाम रहने के बाद प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ की सरकार सत्ता से बाहर हो गई है. प्रचंड अब वह नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति होने तक अंतरिम पद पर बने रहेंगे.
नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 100 (3) के अनुसार, संसद में विश्वास प्रस्ताव प्राप्त करने में असफल होने वाला प्रधानमंत्री स्वतः ही बर्खास्त हो जाता है.
सरकार के गठन के बाद से 18 महीनों में प्रतिनिधि सभा ने शुक्रवार को पांचवीं बार विश्वास प्रस्ताव पर मतदान किया.
नेपाली संविधान के अनुच्छेद 100 के मुताबिक़, संसद के निचले सदन 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में बहुमत के लिए 138 सीटों की ज़रूरत है.
शुक्रवार को बुलाई गई संसद की बैठक में 194 सांसद प्रचंड के ख़िलाफ़ थे और 63 सांसद विश्वास मत के पक्ष में खड़े हुए.
शुक्रवार को हुए मतदान में 258 सांसदों ने हिस्सा लिया. हालाँकि, एक व्यक्ति ने ‘नो वोट’ के पक्ष में अपनी राय व्यक्त की.
मतदान के बाद नतीजे घोषित करते हुए स्पीकर देवराज घिमिरे ने कहा कि प्रधानमंत्री के विश्वास मत के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया गया है.
प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड ने विश्वास मत का प्रस्ताव रखते हुए नेपाली कांग्रेस-सीपीएन-यूएमएल (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल यूनिफ़ाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) की कड़ी आलोचना की.
विश्वास मत मांगते समय प्रचंड ने अपने पूर्व साथी केपी शर्मा ओली के प्रति अपना नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा, “उनके (केपी शर्मा ओली) अल्पमत में आने के बाद, उनके मित्र जो संसद को भंग करने के आदी थे और इसका समर्थन करते थे, नैतिकता का पाठ पढ़ाते रहे.”
17 जून की आधी रात को शेर बहादुर देउबा और ओली के बीच हुए समझौते पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, “अगर इरादे साफ़ हैं, तो क्या हमें पहले और दूसरे पक्ष की बैठक के लिए एक अंधेरे और बंद कमरे की ज़रूरत है?”
प्रचंड ने इस बात पर जोर दिया कि नेपाल के संविधान में माओवादी सेंटर का ‘सबसे बड़ा योगदान’ है और कहा कि उनकी पार्टी “इसे कमज़ोर नहीं होने देगी.”
उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के बावजूद अगले दिन यूएमएल के अध्यक्ष ने जवाब दिया कि ऐसा ‘कुछ नहीं हुआ’ है.
कांग्रेस और यूएमएल पर निशाना साधते हुए प्रचंड का बयान था, “जिस जगह और जिस वक़्त आपने समझौता किया, उससे ये साफ़ है कि आप साज़िश में शामिल थे.”
उन्होंने नए सत्ता समीकरण के नेताओं पर राष्ट्रीय सहमति को ‘दिखावा करने’ का आरोप लगाया.
कांग्रेस और यूएमएल पर ‘किसी और की शह पर मेलमिलाप करने’ का आरोप लगाते हुए उन्होंने टिप्पणी की कि दूसरों को ‘गुमराह’ करने से कोई राष्ट्रीय सहमति नहीं बनेगी. लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि इसका सूत्रधार कौन था.
उन्होंने कहा, “अगर मंशा साफ़ होती तो राष्ट्रीय सहमति की चर्चा इस संसद के माध्यम से की जा सकती थी.”
उन्होंने ऐसा न कर साज़िश रचने का आरोप लगाया.
यह कहते हुए कि सरकार उनके नेतृत्व में अच्छा काम कर रही थी, उन्होंने दावा किया कि यह सत्ता का खेल था और यह ‘सुशासन के पक्ष में उठाए गए कदमों के बाद सरकार को गिराने का एक विडंबनापूर्ण आधार’ बन गया था.
उन्होंने कहा कि जब सरकार ने भ्रष्टाचार और भूमि हेराफेरी के विभिन्न मामलों पर कार्रवाई शुरू की, तो वे उनकी सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे थे.
“लोगों से मेरी अपील है – जागो, अब समय आ गया है कि आप अपनी ताकत दिखाएं.”