पश्चिम एशियाई दौरे में फिलस्तीन जाकर संतुलन बनाएंगे मोदी
विश्व आर्थिक मंच और आसियान सम्मेलन के बाद भारत अब पश्चिम एशिया में अपनी कूटनीतिक पहुंच बढ़ाने में जुटा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों और चुनिंदा कारोबारियों का जत्था 10 फरवरी को पश्चिम एशिया के तीन देशों- फिलस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान के दौरे पर जाएगा। सबसे कम अवधि का, लेकिन सबसे अहम प्रवास फिलस्तीन में होगा। फिलस्तीन दौरा मोदी सरकार की संतुलन बनाने की कोशिश मानी जा रही है जबकि अमीरात और ओमान के साथ निवेश और कारोबार को लेकर बड़े समझौते होने वाले हैं।
पश्चिम एशिया का यह दौरा 13 फरवरी तक चलेगा। विदेश मंत्रालय के एक सचिव के अनुसार, इस दौरान 10 फरवरी को मोदी फिलस्तीन के शहर रामल्लाह और वहां कुछ घंटों के लिए शिखर वार्ता में शामिल होंगे। यह शहर यरूशलम से कुछ ही किलोमीटर दूर है, जिसे अमेरिका ने इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता दे दी है। भारत ने अपनी पूर्ववत नीति पर चलते हुए संयुक्त राष्ट्र आमसभा में इस मुद्दे पर अमेरिकी प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। उसके बाद इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा में बड़े रक्षा सौदे हुए। मोदी की फिलस्तीन यात्रा को संतुलन बनाने की कवायद माना जा रहा है। वे संकेत देंगे कि भारत इस प्रमुख तेल उत्पादन देश के साथ ही पहले की तरह सुदृढ़ संपर्क रखना चाहता है। साथ ही, भारत की कोशिश तेल उत्पादक इस्लामी देशों में पाकिस्तान के खिलाफ अपने राजनय को धार देने की भी है।
इस क्रम में संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा को पूंजी निवेश के लिहाज से अहम माना जा रहा है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल दुबई में ‘वर्ल्ड गवर्नमेंट समिट’ में भी हिस्सा लेगा। मोदी वहां बीज भाषण करेंगे। इस दौरान अरब अमीरात के साथ 14 संधियों पर वार्ता होगी। रक्षा, सुरक्षा, कारोबार, ऊर्जा संरक्षण व सामरिक संबंध समेत विभिन्न मुद्दों पर समझौतों की तैयारी है। संयुक्त अरब अमीरात 750 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश भारत में करेगा। भारत में ढांचागत क्षेत्र में यह निवेश नेशनल इनवेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के जरिए कराया जाएगा। अन्य एक महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक देश ओमान के साथ भारत बासमती चावल समेत विभिन्न अनाजों की आपूर्ति का बड़ा करार करेगा। पाकिस्तान के साथ भारत के तल्ख संबंधों के मद्देनजर ओमान दौरे को अहम माना जा रहा है। भारत अभी वहां 20 हजार टन बासमती चावल भेजता है, जबकि पाकिस्तान एक लाख 80 हजार टन बासमती चावल। भारत अपना बासमती निर्यात बढ़ाकर इस साल 60 हजार टन करना चाहता है। यह निर्यात पाकिस्तानी चावल की कटौती के एवज में होगा।