पश्चिम बंगाल- डेंगू से दम तोड़ते लोग खोल रहे हैं सरकारी दावों की पोल

शंकर जालान

कोलकाता शहर और उसके आसपास के जिले के हजारों लोग इनदिनों न केवल डेंगू के बढ़ते प्रकोप से भयभीत हैं, बल्कि इस वर्ष दजर्नों लोग इसकी वजह से मौत की नींद सो चुके हैं और विभिन्न अस्पतालों (सरकारी व गैरसरकारी) में पीड़ित सैकड़ों लोग जिंदगी के लिए मौत से लड़ रहे हैं। हर साल डेंगू की रोकथाम के लिए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग, विभिन्न नगर निगम और अलग-अलग नगरपालिकाओं की ओर से करोड़ों खर्च कर जागरूकता अभियान चलाया जाता है, लेकिन होता कुछ नहीं।  महानगर कोलकाता के अलावा हावड़ा, हुगली, उत्तर चौबीस परगना व दक्षिण चौबीस परगना जिले के कई इलाकों में डेंगू ने जो हड़कंप मचा रखा है, उसकी गूंज पूरे राज्य में सुनाई दे रही है। सूबे की मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री ममता बनर्जी जहां डेंगू को मौसम की मार बता रही हैं, वहीं, विपक्ष (कांग्रेस, वाममोर्चा व भाजपा) राज्य सरकार पर लापरवाही और उदासीनता का आरोप लगा रहा हैं। इतना ही नहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डेंगू के मुद्दे पर राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी से मिले। ज्ञापन पर गौर फरमाते हुए राज्यपाल ने डेंगू के मामले में राज्य सरकार से चिकित्सा सुनिश्चित करने को कहा। इस बीच, डेंगू को लेकर घिरी राज्य सरकार के मंत्री जहां अपने-अपने स्तर पर बयानबाजी कर रहे हैं, वहीं राज्य के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी इसकी रोकथाम को सड़कों पर उतरे।

इसी बीच, राज्य में 110 ब्लड बैंक (राज्य सरकार के अधीन-59, केंद्र सरकार के अधीन-16, निजी-35) होने के बावजूद रक्त की भारी की कमी ने रोगियों के लिए परेशानी बढ़ा दी है। तो वहीं, प्लेटलेट्स की कालाबाजारी आग में घी डालने का काम कर रही है। राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी दुरुस्त है, इस बात की पुष्टि इसी से होती है कि पद्मश्री करीमुल हक को भी रक्त के लिए अपमानित होना पड़ा था। चिकित्सा जगत के जानकारों के मुताबिक राज्य में हर साल 10 लाख यूनिट खून की जरूरत होती है, लेकिन साढ़े सात लाख यूनिट ही उपलब्ध हो पाता है।

वहीं, मेडिकल ब्लड बैंक के साधारण सचिव डी. आशीष ने बताया कि सबसे अधिक निगेटिव ब्लड ग्रुप की कमी पाई जा रही है। पूरे ब्लड ग्रुपों में रोजाना करीब 15 फीसद निगेटिव ब्लड ग्रुपों की मांग है, जिसे पूरा कर पाना मुश्किल साबित हो रहा है। एक सौ में मात्र दो या तीन लोगों में ही निगेटिब ब्लड ग्रुप पाया जाता है। ऐसे में खून नहीं मिलेगा, तो प्लेटलेट्स कैसे बनेगी? यह भारी चिंता का विषय है। कोलकाता नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग के मेयर परिषद के अतिन घोष ने ‘जनसत्ता’ को बताया डेंगू को खत्म करने के लिए नगर निगम का काम जारी है और काफी हद तक कोलकाता में डेंगू को नियं^ित भी किया जा चुका है। कुछ क्षे^ों में डेंगू का असर है और वहां नियमित रूप से फॉगिंग और साफ-सफाई की जा रही है। शुरुआती दौर में सूबे की सरकार यह मानने को ही तैयार नहीं थी कि राज्य में डेंगू डंक मार रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के डेंगू पर अफवाह फैलाने की बात कहने पर छोटे चिकित्सा केंद्रों से लेकर मेडिकल कॉलेजों तक में हड़कंप मच गया था, लेकिन जब पानी सर से ऊपर गया तो सत्ता पक्ष के नेतागण कहने लगे कि डेंगू है, लेकिन नियंत्रण में है।
इसे लेकर राजनीति नहीं की जाए। कुछ देर से ही सही राज्य सरकार ने डेंगू का प्रकोप होने की बात स्वीकार की और इससे निपटने को युद्धस्तर पर जुटी, लेकिन तब तक डेंगू के डंक कसे 35 लोग की जान जा चुकी थी।

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